________________
वि० पू० ४१८ वर्ष ।
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
उपसंहार प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि १-आपका जन्म विद्याधर कुल में हुआ। २-आपकी दीक्षा केशीश्रमणाचार्य के कर कमलों से हुई। ३- आप चौदहपूर्वज्ञान के धुरंधर विद्वान एवं अहिंसा धर्म के कट्टर प्रचारक थे। ४-आपके सुरिपद का समय महावीर निर्वाण वर्ष का है।। ५-आपने मरुधर भूमि में पधार कर जैनधर्म रूपी कल्पवृक्ष लगाया। ६-आपने श्रीमाल नगर में पधार कर ९०००० घरों को दीक्षा दी। वही लोग आगे चल कर
श्रीमाल कहलाये। ७-आपने पद्मावती नगरी में जाकर यज्ञहिंसा बन्द कराई और ४५००० घर क्षत्रियों को ___ जैनधर्म में दीक्षित किया । वही लोग समयान्तर में प्राग्वट ( पोरवाल ) नाम से प्रसिद्ध हुये । ८-आपने आबू से कोरंटपुर तक जैनधर्म का काफी प्रचार किया । ९-आपके शासन समय राजा जयसैन के पुत्र चन्द्रसैन ने चन्द्रावती नगरी और शिवसैन ने
शिवपुरी की स्थापना कर जैन नगर बसाये । जो कि वहाँ के राजा प्रजा जैन धर्मोपासक थे। आपने अनेक मुमुक्षु नर नारियों को जैन दीक्षा देकर श्रमणसंघ में खूब वृद्धि की जिसमें
रत्नचूड़ विद्याधर को भी दीक्षा दी थी। १०-आपका स्वर्गवास वीर निर्वाण सं० ५२ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के शुभ दिन सिद्धिगिरि की शीतल
छाया में हुआ था। ११-आपका जीवन त्याग वैराग्य एवं परोपकार के लिये ही हुआ था जिसको पढ़ने सुनने अनु.
करण करने से जीवों का कल्याण हो सकता है। आचार्य स्वयंप्रभसूरि वर संसार में विख्यात थे ।
विद्वान थे बहुभाषी थे वे पंच पट्टधर ज्ञात थे। श्री माल नगरी मध्य में नव्वे सहस्र कुटुम्बजन ।।
इनसे आधे पद्मावती में जैनी बने थे धार प्रन ॥ इस तरह आचार्य ने वर्द्धन किया जिन धर्म का ।
वे सम हृदय पर हो सदय वन्धन मिटाया कर्म का ।
॥ इति भगवान पार्श्वनाथ के पंचम पट्ट पर आचार्य श्री स्वयंप्रभसूरि हुये ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
89 www.jainelibrary.org