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________________ आचार्य स्वयप्रभसूर का जीवन | | वि० पू० ४७० वर्ष करते थे जैसे श्राम्रवृक्ष पर लोग पत्थर फेंकते हैं पर वे तो बदले में आन जैसा मधुर फल ही देते हैं । बस इस प्रकार बिहार करते हुए सूरीश्वरजी अपने शिष्यमंडल के साथ तीर्थाधिराज श्री सिद्धगिरि पधारे और वहां की यात्रा बड़े ही श्रानन्द के साथ की। कुछ अर्सा वहां पर स्थिरता कर वहां से लौट कर आबुदाचल पधारे वहां के तीर्थ की यात्रा कर कुछ रोज निर्वृति के निमित्त वहां ठहर गये । कभी २ वहां पर आपका व्याख्यान भी हुआ करता था । एक दिन आपका व्याख्यान अहिंसा पर हुआ। जिसमें मुख्यतथा यज्ञ की हिंसा के लिये विस्तार से आलोचना की थी जिसके प्रमाण इतने अकाट्य थे कि सुनने वालों के हृदय में दया के अंकुर पैदा हुये बिना नहीं रहते थे । उस दिन के व्याख्यान में अन्य लोगों के साथ श्रीमाल नगर से श्राये हुये कुछ लोग भी थे । वे लोग सूरिजी का दयामय व्याख्यान सुन कर आश्चर्य में डूब गये और मन ही मन में विचार करने लगे कि अहो ! कहां तो इन दया के अवतार का श्रहिंसा पर व्याख्यान और कहां अपने यहां होने वाले निष्ठुर यज्ञ, कि जिसके अन्दर असंख्य मूक प्राणियों का निरापराध होते हुये बलिदान दिया जाता है । श्रतः उनका हृदय दया से लबालब भर गया ! उन्होंने सूरिजी को नमन करके प्रार्थना की कि हे दयालु ! हम लोगों ने तो इस प्रकार का व्याख्यान अपनी जिन्दगी में आज पहिले ही सुना है यदि आप जैसे महात्मा हमारे यहां पधारें तो बड़ा भारी लाभ होगा। कारण, कि हमारे यहां नास्तिकों का साम्राज्य बरत रहा हैं । हाल तत्काल ही में एक वृहद् यज्ञ होना प्रारम्भ हुआ है जिसके लिये अनेक जाति के कई सवालक्ष निरापरा पशु एकत्र किये गये हैं जिनका बलिदान दिया जायगा । तदोपरान्त नगर के प्रत्येक घर से भैंसा और बकरे होमे जायंगे और उसमें धर्म, स्वर्ग, मोक्ष तथा दुनिया की शांति एवं उन्नति का कारण बतलाया जाता है और हम लोग भी उन लोगों के अन्दर के हैं। इतना होने पर भी हमारे यहां के राजा भी बड़े ही सरल स्वभाव एवं भद्रिक परिणामी हैं । हमें उम्मेद ही नहीं पर पूर्ण विश्वास है कि आपका वहाँ पधारना हो जाय तो आपके उपदेश का प्रभाव वहाँ की जनता पर काफी पड़ सकेगा और लाखों मूक प्राणियों को अभयदान भी मिल जायगा । श्रतः श्राप कृपा कर हमारे श्रीमालनगर की ओर अवश्य पधारें। सूरिजी ने उन गृहस्थों का कहना सुन कर अपने दिल में विश्वास कर लिया और कह दिया कि क्षेत्र स्पर्शन होगा तो हम उधर ही बिहार करेंगे। पर यदि हमारा उधर ना होजाय तो आप अपनी विनती को याद रखना | गृहस्थों ने कहा कि भगवान् ! यदि हमारा भाग्य हो और आपका पधारना हमारे यहां होजाय तो हम तो क्या पर बहुत से लोग आपकी सेवा भक्ति करने वाले मिल जायगे । आप इस बात का तनिक भी विचार न करें । सूरिजी ने कहा कि ठीक महानुभावो ! हमारे क्या चाहिये, हमारा तो जीवन ही परोपकार के लिये है। बस सूरिजी के वचन पर उन गृहस्थों को विश्वास हो गया कि सूरिजी महाराज का पधारना हमारे यहां अवश्य होगा । अतः वे लोग सूरिजी को वन्दन कर अपने नगर की ओर चले गये और नगर में पहुँच कर कई लोगों को यह शुभ समाचार सुना भी दिये । इधर सूरिजी महाराज रात्रि समय विचार कर रहे थे कि मैंने गृहस्थों को कह तो दिया है, पर क्षेत्र परिचित है, पाखण्डियों का साम्राज्य है, इत्यादि । इतने में तो अर्बुदाचल की अधिष्ठात्री देवी चक्रेश्वरी Jain Education International For Private & Personal Use Only ५१ www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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