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आचाय कशाश्रमण का जीवन |
१० ५० ४७० वर्ष
पट्टधर हुये, क्योंकि भगवान् महावीर के नौ गणधर तो भगवान् की मौजूदगी में ही मोक्ष पधार गये थे, शेष इन्द्रभूति और सौधर्म दो गणधर रहे जिसमें इन्द्रभूति को तो उसी दिन केवल ज्ञान हो गया था. अतः भगवान् महावीर के पट्टधर गणधर सौधर्म को ही बनाया गया था। आप बड़े ही प्रतिभाशाली एवं धर्मप्रचारक थे, आपका पवित्र जीवन वीर वंशावली में विस्तार से लिखा मिलता है ।
बौद्ध प्रन्थों में इस बात का उल्लेख किया है कि ज्ञातपुत्र महावीर के निर्वाण के पश्चात् उनके शिष्यों में कुछ कलह हो गया था पर जैनशास्त्रों में इस बात का जिक्र तक भी नहीं है कि महावीर के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों में कुछ भी क्लेश हुआ हो । हां, भगवान् महावीर की मौजूदगी में जमाली और गोसाला का उत्पात जरूर हुआ था जो भगवत्यादिसूत्र में उल्लेख किया गया है। शायद बौद्धों ने उस जमाली गोसाला काश जो महावीर की मौजूदगी में हुआ उसको भगवान महावीर के निर्वाण के बाद लिख दिया हो तो उसको बौद्धों की भूल ही समझना चाहिये ।
प्रसंगोपात भगवान् महावीर का संक्षिप्त में जीवन कह कर अब मैं अपने मूल विषय पर आता हूँ कि श्राचार्य केशीश्रमण बड़े ही प्रभाविक एवं धर्म-प्रचार करने वाले सूरीश्वर हुये जिन्होंने मृत्यु के मुँह में जाने वाले जैनधर्म को जीवित रक्खा । इतना ही क्यों पर भगवान् महावीर के शासन समय में भी वे चारों और धूम २ कर धर्म का प्रचार किया करते थे ।
अन्त में श्राचार्य केशी श्रमण अपनी अन्तिम अवस्था में केवल ज्ञान प्राप्त करके मुनि स्वयंप्रभसूरि को आचार्य पदसे विभूषित बना कर अपनी सब समुदाय का भार स्वयंप्रभसूरि के अधिकार में करके आप जन्मजरामरणादि के दुःख को नष्ट कर अनशन एवं समाधिपूर्वक मोक्ष पधार गये
क्रान्ति के अवतार थे आचार्य समुद्र सुनाम था ।
उनसे प्रभावित थे सभी उनका स्वरूप ललाम था ॥ आवन्ति नृप जयसेन निज पटदेवी अनंग सेना सहित ।
जैनधर्म में दीक्षित हुये हो वीतराग हिंसा रहित ॥
निजपुत्र केशीकुमार को भी धर्म में प्रवृत बना ।
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जैनधर्म को वर्द्धन किया कर दिव्यतम परभावना ||
ये तु पटधर केशि ही विख्यात श्रमणाचार्य थे ।
थे ब्रह्मचारी तापसी उनके अनोखे कार्य्य थे ॥ सेविया का राजा प्रदेशी नास्तिकों में अग्र था ।
आचार्य के उपदेश से ही वह बना जैनाग्र था ॥ पाखंडियों के चक्र में अनेक भूपति ग्रस्त थे । उनका
किया उद्धार था वे अज्ञता से त्रस्त थे ||
॥ इति श्री भगवान पार्श्वनाथ केचतुर्थ पट्टधर आचार्य केशीश्रमण बड़े ही प्रतिभाशाली हुए ॥
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