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________________ आचार्य केशीश्रमण का जीवन ] [वि० पू० ५५४ वर्ष और मेरे करने योग्य पोषध, उपवास, व्रत, पचरखान तथा आचार विचार का पालन करता रहूंगा । अतः मैं रमणीक का अरमणीक न होऊंगा । राजा के कहने पर सूरीजी को विश्वास हो गया कि राजा प्रदेशी बड़ा धर्मज्ञ है अतः उसको और भी जो कुछ देने काबिल शिक्षा थी वह दी जिसको राजा ने बड़े हर्ष के साथ ग्रहण की। बाद सूरिजी को वन्दन नमस्कार कर अपने स्थान को चला गया और आत्मकल्याण में लग गया। इधर आचार्य केशी श्रमण भी वहां से विहार कर अन्य प्रदेश में चले गये । आहा ! संसार की स्वार्थ वृत्ति, जब से राजा प्रदेशी संसार के कार्य्यं से विरक्त हो आत्मकल्याण में लग गया और छट छट पार करने लगा तो उसकी रानी सूरिकान्ता जो एक दिन राजा को वल्लभ थी उसने सोचा कि राजा ने राज की सार-सम्भाल करना छोड़ दिया और केवल धर्म कार्य में ही लग गया तो ऐसे राजा से मेरा क्या स्वार्थ है अतः किसी विष, शस्त्र या अग्नि के प्रयोग से मार डालूँ और अपने पुत्र सूरिकान्त को राज दे दूँ। इस विचार में रानी ने कई दिन निकाल दिये, परंतु ऐसा समय हाथ नहीं लगा कि वह राजा के जीवन का अंत कर दे । तब उसने अपने पुत्र सूरिकांत को बुला कर सब हाल कहा, परंतु कुंवर अपने पिता को इस प्रकार मारने में रानी से सहमत नहीं हुआ । अतः वहां से उठ कर चला गया। इस पर रानी ने सोचा कि कहीं कुंवर जाकर राजा को न कह दे अतः इस कार्य में विलम्ब न करना चाहिये । राजा तो छट छट पारणा करता था उसके बारह छट हो चुके थे और तेरहवां छट का पारणा था उस समय रानी ने बड़ी नम्रता के साथ आग्रह किया कि हे धर्मात्मा पतिदेव ! आज का पारणा ( भोजन ) हमारे यहां करके मुझे अनुगृहीत करें । राजा ने स्वीकार कर लिया और रानी ने विषमिश्रित भोजन से राजा को पारणा करा दिया । जब राजा के शरीर में विष फैलने लगा तो उसने जान लिया। फिर भी रानी पर किंचित भी द्वेष नहीं किया और अपने संचित कर्म समझ कर अपना चित्च समाधि में रक्खा । इतना ही क्यों पर उसने समाधि मरण की तैयारी कर ली अर्थात् घास का संथारा बिछा कर उस पर आप बैठ गया । पहला नमस्कार सिद्ध भगवान को किया दूसरा नमस्कार अपने धर्माचार्य्यं केशीश्रमण को किया । तत्पश्चात् अपने भवसम्बन्धी पापों की आलोचना की और १८ पाप तथा ४ प्रकार के हार का सर्वथा त्याग कर दिया और समाधि पूर्वक काल करके प्रथम देवलोक में सूरियाभ नाम के विमान में चार पल्योपम के आयुष्य वाला देव हुआ जिसका नाम सूरियाभ है जो अभी तुम्हारे सामने नाटक करके गया है । इससे तुम्हारे प्रश्न का समाधान हो गया कि सूरियाभ देव पूर्व भव में श्वेताम्बिका नगरी का प्रदेशी राजा था । गौतम -- हे प्रभो ! यह सूरियाभदेव देवता का भव समाप्त कर कहाँ जायगा ? में राजकुँवर होगा महावीर - गौतम ! यह सूरियाभ देवता का जीव यहां से चल कर महाविदेह क्षेत्र जिसका नाम दृढ़पइना रक्खा जावेगा और वह वहां पर सब प्रकार के सांसारिक सुखों आखिर दीक्षा लेकर केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में चला जायगा । का अनुभव करके “राजप्रश्नी सूत्र” प्रश्न - उत्तराध्ययन सूत्र के २३ वें अध्ययन में गौतम और केशीश्रमण की आपस में चर्चा हुई और केशी श्रमण ने चार महाव्रत के पाँच महाव्रत स्वीकार कर लिये थे तो केशीश्रमण को पार्श्वनाथ की संतान कैसे कही जा सकती है ? उत्तर - उस समय केशीश्रमण नाम के दो मुनि हुये हैं १ - गौतम के साथ चर्चा करने वाले तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.gelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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