________________
वि० पू० ५५४ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
wwwwwwwww
पुद्गल ६-शब्द के पुद्गल ७-गंध के पुद्गल ८-भव्याभव्य ९-यह जीव इस भव में मोक्ष जावेगा या नहीं और १०-यह जीव तीर्थकर होगा या नहीं ? इन दस बातों को सर्वज्ञ ही बता सकते हैं।
९-प्रश्न-हे भगवन् ! आपके शासन में सब जीवों को बराबर माना गया है तो हस्ति इतना बड़ा और कुथवा इतना छोटा क्यों ?
उ०-एक दीपक है, उस पर छोटा सा ढाकन रख देने से दीपक का प्रकाश उस ढाकन के नीचे समावेश हो जाता है अगर उससे कुछ बड़ा ढाकन रक्खें तो दीपक का प्रकाश बड़ा ढाकन जितना पड़ेगा। इस न्याय से दीपक के मुताबिक जीव प्रदेश है और ढाकन के माफिक नाम कर्म की औघना (शरीरमान ) है । जो पूर्व भव में जितना लम्बा चौड़ा शरीरमान-औघना कर्म बांधा है उतने में जीव का प्रदेश समावेश हो सकता है जैसे हाथी और कंथवा ।
१०-प्रश्न-हे प्रभो ! आपकी युक्तिये प्रबल एवं प्रमाणिक हैं, परन्तु आप सोच सकते हो कि मेरे बाप दादा से चला आया धर्म चाहे वह खोटा भी क्यों न हो परन्तु मैं उसे एकाकी कैसे छोड़ सकता हूँ?
उ०-प्रदेशी तू भी लोहावाणिया का भाई है, परन्तु याद रखना जैसे लोहावाणिया को पश्चाताप करना पड़ा उसी तरह तुमको भी पछताना पड़ेगा।
प्रदेशी-भगवान् ! लोहावाणिया कौन था और उसको क्यों पश्चाताप करना पड़ा था ? कृपा कर इसको भी सुना दीजिये।
केशीश्रमण-नरेश ! ध्यानपूर्वक सुनना यह तुम्हारे लिये बड़े लाभ का दृष्टान्त है । एक नगर से बहुत से व्यापारी लाभार्थ गाड़ों में किरयाणा आदि माल भर कर उसको बेचने के लिये विदेश में जा रहे थे, चलते २ गस्ते में कई लोहे की खाने आई जो किरयाणा से बहुमूल्य वाली थी अतः व्यापारियों ने अपने माल को छोड़ कर गाड़ों में लोहा भर लिया, फिर आगे चलने पर तांबे की खानें आई जो लोहे से कई गुना अधिक मूल्य वाली थीं अतः व्यापारियों ने लोहे को छोड़ तांबा से गाड़ियां भरली। उसमें एक व्यापारी ऐसा भी था कि उसने तांबा न लेकर लोहा ही रक्खा तब दूसरे व्यापारियों ने उसका हित चाह कर कहा कि यह तांबा बहुमूल्य है हम सब लोगों ने लोहा छोड़ कर तांबा से गाड़ियां भर ली हैं अतः तुम भी तांबा ले लो परन्तु उसने जवाब दिया कि मैं जानता हूँ कि लोहा की बजाय तांबा बहुमूल्य है परंतु मैं तुम्हारे जैसा चंचल चित्तवाला नहीं हूँ कि एक को छोड़ दूसरे को ग्रहण कर लू चाहे लाभ हो चाहे हानि मैंने तो जो ले लिया सो ले लिया । खैर वहां से आगे चले तो चांदी की खाने आई सब लोगों ने तांबा छोड़ कर चांदी ले ली पर लोहा वाले लोहावाणिया ने तो लोहा ही रक्खा । आगे चल कर सोने की खानें आई सब लोगों ने चांदी छोड़ सोना ले लिया फिर भी लोहावाणिया ने तो लोहे को ही महात्म्य दिया, आगे चल कर रत्नों की खाने आई । व्यापारियों ने सोना छोड़ कर गाड़ों में रत्न भर लिये और अपने साथ वाले लोहावाणिया का हितचिन्तन करते हुए उसको बार २ समझाया,भाई तुमको तांबा चांदी और सोने की खानों पर समझाया था परन्तु तुमने एक की भी बात न सुनी फिर भी तुम हमारे साथ में आये हो इसलिये हम तुम्हारे भले की कहते हैं कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है तुम अब भी इस लोहे को छोड़ कर रत्नों को ले लो कि अपन सब बराबर हो जावें परंतु लोहावाणिया ने उत्तर दिया कि अपने बाप दादों से चली आई रीति रिवाज को हम कैसे छोड़ सकते हैं हमने एक वार ले लिया सो ले लिया अब बदला बदली नहीं करते हैं । भला ऐसे
Jain Educa
temational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org