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वि० पू० ५५४ वर्ष]
[भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
सकता है ? नहीं । इसी प्रकार मनुष्यलोक के दुगंधित पुद्गनों की गन्ध भूमि से ४०० या ५०० योजन ऊंची जाती है । अतः उस दुर्गध के मारे देवता मर्त्यलोक में नहीं आते हैं। जैसे देवपूजन को जाने वाले के लिए टट्टी का उदाहरण । और भी शास्त्रों में कहा है कि १-तत्काल के उत्पन्न हुए देवताओं के मनुष्यों का सम्बन्ध छूट जाता है ( विस्मृत ) और वहाँ देव देवियों से नया सम्बन्ध हो जाता है इसीसे देवता आ नहीं सकते हैं । २-तत्काल का उत्पन्न हुआ देवता देवता सम्बन्धी दिव्य मनोहर काम-भोगों में मूर्छित हो जाते हैं अतः यहाँ के सड़न पड़न विध्वंसन काम भोगों का तिरस्कार करते हैं इसलिए आ नहीं सकते ३-तत्काल का उत्पन्न हुआ देवताओं के आज्ञाकारी देवदेवियाँ एक नाटक करते हैं उन्हीं को देखने में लग जाते हैं वह सुखपूर्वक देखने वालों को ज्ञात होता है कि मुहूर्त मात्र का नाटक है परन्तु यहाँ २००० वर्ष क्षीण हो जाते हैं अतः देवता पा नहीं सकते हैं ४-तत्काल के उत्पन्न हुये देवता मनुष्य लोक में आना चाहें परन्तु मृत्यु लोक की दुर्गन्ध ४ . ०-५०० योजन ऊर्ध्व जाती है। अतः दुर्गध के मारे देवता यहां पर श्रा नहीं सकते हैं । अतः राजन् ! तू इस बात को स्वीकार करले कि जीव और शरीर अलग २ है और जीव को किये हुये शुभाशुभ कर्म अवश्य भोगने पड़ते हैं जो सुखी, दुखी, मूर्ख, विद्वान, ब्रह्मचारी, व्यभिचारी श्रपुत्री, बहुपुत्री, रोगी, निरोगी, दुर्भागी, सुभागी, आदि आदि विचित्र प्रकार का संसार आपकी नजरों के सामने मौजूद है । यदि तज्जीव तद्शरीर माना जाय तो जीव के पुन्य पाप का फल ही नहीं । पुन्य पाप क फल नहीं तो परलोक नहीं; परन्तु यह ऊपर बतलाई संसार की विचित्रता से यह प्रत्यक्ष खिलाफ है अतः आप को मानना चाहिये कि जीव अलग है और शरीर अलग है।
(२) प्रश्न-हे प्रभो आपको युक्तियाँ बहुत आती हैं परन्तु मैं आपको पूछता हूँ कि मेरे पितामह (दादा) बड़े ही अधर्मी थे। प्राणियों के रक्त से हमेशा हाथ रंगे रहते थे, जीवों को मारने में उनको घृणा नहीं थी अतः आपके मतानुसार वह नर्क में गये होंगे । यदि वह आकर मुझे नरक के समाचार कहें कि हे पौत्र ! मैं पाप करके नक में गया हूँ यदि तू भी पाप करेगा तो तेरे को भी नर्क में दुःख सहन करना पड़ेगा तो मैं आपका कहना स्वीकार कर सकता हूँ कि शरीर और जीव अलग २ हैं वरना मेरा माना हुआ अच्छा है कि जीव शरीर एक ही है।
१०-हे राजन् ! मैं आपसे पूछता हूँ कि यदि आपकी प्यारी पटरानी सूरिकान्ता के साथ कोई व्यभिचारी बलात्कार करे तो क्या आप उसको दंड देंगे ? हाँ प्रभो उस दुष्ट को मारूंगा पीटूगा कैद कर दूंगा । मुनि ने कहा यदि वह व्यभिचारी आपसे कहे कि थोड़ी देर के लिये मुझे जाने दीजिये कि मैं अपनी स्त्री पुत्रादि कुटुम्बियों से मिल कर वापिस आ जाऊंगा तो क्या आप उसको छोड़ देंगे ? नहीं प्रभो ऐसे कुकृत्य करने वाले को क्षण भर भी नहीं छोडूं । हे राजन् ! इसी भांति नारकी के नैरिये अपने दुष्कृत्यों को भोगते हुये यहां नहीं पा सकते हैं और उसके कई कारण भी हैं जैसे १-तत्काल उत्पन्न हुआ नैरिया नारकी की महावेदना को क्षय नहीं कर सका अतः वह पाना चाहता है तो भी नहीं आ सकता अर्थात् जितनी मुद्दत कारागार की है उसको पूर्ण न भुगत ली हो वहाँ तक आ नहीं सकता है २-नैरिये परमाधानी देवताओं के आधीन रहते हैं अतः देवता उसको क्षण भर भी नहीं छोड़ता है ३-नारकी में भोगने योग्य कर्म नहीं भोग सके अतः वह पा नहीं सकता है४-नारकी सम्बन्धी प्रायुध्य जहां तक सम्पूर्ण क्षय नहीं करता है वहां तक वहां से निकल नहीं सकता है । इन कारणों से नैरिये चाहते हुये भी नहीं आ सके तो
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