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आचार्य केशीश्रमण का जीवन ]
[वि० पू० ५५४ वर्ष
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हे प्रदेशी ! जैसे कोई हसल के चुराने वाला व्यापारी मार्ग को छोड़कर उन्मार्ग जाता है इसी प्रकार राजन् ! तुम भी हमारा हसल ( वंदना ) चुरा कर प्रश्न करते हो । हे नरेश्वर ! क्या यहाँ आने के पहिले तुम्हारे ये विचार हुये थे कि यह जड़ मूढ़ कौन बैठा है, और इनकी सेवा करने वाले जड़मूद कौन हैं, क्या यह सत्य है ?
राजा प्रदेशी को केशीश्रमण का वचन श्रवण कर बड़ा आश्चर्य हुा । उसने सोचा कि यह कोई ज्ञानी महात्मा है फिर भी उसने पूंछा हे प्रभो ! आपने मेरे मन की बात को कैसे जान ली ? केशीश्रमण-हे भूपति ! हमारे जैन शासन में पांच प्रकार के ज्ञान बतलाये हैं यथाः
१-मतिज्ञान-मगज से शक्तियों द्वारा ज्ञान होना। २-श्रुतिज्ञान-श्रवण करने से ज्ञान होना। ३-अवधिज्ञान-मर्यादायुक्त क्षेत्र पदार्थों का देखना । ४-मनः पर्यवज्ञान-अढाई द्वीप के संज्ञी जीवों के मन का भाव जानना । ५- केवल ज्ञान-प्रात्म का सर्व विकास होने से सर्व पदार्थों को हस्तामलक की भाँति
देखना और जानना। इन पांच ज्ञानों से एक केवल ज्ञान छोड़ कर शेष चार ज्ञान मुझे हैं जिसके जरिये से मैंने तेरे मन की बात कही है।
इस पर राजा प्रदेशी को इतना ज्ञान तो सहज ही में हो गया कि यह महात्मा कोई अलौकिक पुरुष है, शायद मेरे संशय को मिटा देवें तो भी ताज्जुब की बात नहीं । अतः राजा ने मुनि से पूछा कि क्या मैं यहां बैठ सकता हूँ?
केशीश्रमण ने उत्तर दिया हे राजन् ! यह आपका ही मकान है। राजा बैठ गया और प्रश्न किया कि क्या आप जीव और काया को अलग अलग मानते हो ?
मुनि ने कहा हाँ, जीव और काया अलग अलग हैं और इसको मैं प्रमाणों द्वारा साबित भी कर सकता हूँ। ____१--प्रश्न राजा- यदि आपकी यही मान्यता है तो मैं पूंछताहूँ कि मेरी दादी जो बड़ी धर्मात्मा थीं उनकी उम्र ही प्रायः धर्म में गई थी । आपकी मान्यतानुसार वह अवश्य स्वर्ग में गई होंगी। यदि वह आके मुझे कह दें कि बेटा मैं धर्म करके स्वर्ग में गई हूँ और वहाँ सुख का अनुभव करती हूँ तुम भी पाप को छोड़ धर्म करो ताकि तुमको भी स्वर्ग मिले । तो मैं मान लूँ कि जीव और शरीर अलग हैं । जो मेरे दादीजी का शरीर यहाँ मेरे हाथ से जलाया गया और उनका जीव स्वर्ग में है । यदि ऐसा न हो तो मेरी मान्यता ठीक है कि वही जीव वही शरीर । शरीर के साथ जीव उत्पन्न होता है और शरीर नष्ट के साथ जीव भी नष्ट हो जाता है। जैसे पांच तत्वों के संयोग से जीव उत्पन्न होता है और पाँच तत्व नष्ट होने से जीव भी नष्ट हो जाता है।
उ०-हे राजन् ! यह सब आपका भ्रम है । देखिये एक मनुष्य स्नान मज्जन कर सुगंधित पदार्थ ले देवपूजन को जा रहा है । रास्ते में एक टट्टी आई जो कि महादुर्गधित थी । वहाँ किसी मनुष्य ने देवपूजन करने वाले को बुलाया कि जरा इस टट्टी में आइये तुम्हारे से कुछ बात करना है । भला वह देवभक्त श्रा
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