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________________ वि० पू० ५५४ वर्षे ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास कई ऐसे भी पार्श्वनाथ के सन्तानिये थे कि अपने जीवन पर्यन्त वे पार्श्वनाथ के सन्तानिये ही रहे थे जैसे आनन्दमैथिलादि ५०० मुनि तुंगिया नगरी में पधारे थे जिन्हों को भगवान महावीर ने तथा गण. धर गौतमस्वामी ने भी पार्श्वनाथ संतानिये कहा है तथा उन्होंने तुंगिया नगरी की आम परिषदा में चार महाव्रतरूपी धर्मदेशना दी थी। दूसरे प्रदेशी राजा को प्रतिबोध देने वाले केशीश्रमणा चाय थे, उन्होंने भी चार महाव्रतरूपी देशना दी तथा उन्हों की मोक्ष भी पार्श्वनाथ संतानियों के रहते हुये ही हुई थी और इन केशीश्रमणाचार्य का विस्तृत वर्णन रायपसेनी सूत्र में है और वह है भी बहुत उपयोगी जिसको पाठकों के लाभार्थं यहां उद्धृत कर दिया जाता है कि भगवान केशीश्रमणाचार्य ने नास्तिक शिरोमणि कठोर हृदयी एवं कूर प्रकृति वाले राजा प्रदेशी को किस हेतु युक्ति एवं अपने ज्ञान द्वारा प्रतिबोध दे कर कट्टर आस्तिक एवं जैनी बनाया था जिसको मैं संक्षिप्त से यहां बतला देता हूँ। ____एक समय भगवान महावीर प्रभु आमलकम्पा नगरी के उद्यान में पधारे वहां के राजा प्रजा ने ३–तप्पभिइ च णं से गंगेयेअणगारे समणं भगवं महावीरं पञ्चभिजाणइ सव्वनु सव्वदरिसी, तए णं से गंगेयेअणगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करेत्ता बंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं चयासी-इच्छामि णं भंते ! तुब्भे अंतियं चाउजामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं एवं जहा कालासवेसियपुत्तो तहेव भाणियव्वं जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ___ "भगवतीसूत्र शत्तक ६ उद्देशा ३२" | 8 तेणं कालेणं २ पासावचिजा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विणयसंपन्ना णाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लजासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोमा जियनिदा जितिंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभय विप्पमुक्का जाव कुत्तियावणभूता बहुस्सुया बहुपरिवारा पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा अहाणुपुधि चरमाणा गामाणुगाम दुइजमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव तुंगिया नगरी जेणेव पुष्फवतीए चेइए तेणेव उवागच्छंति २ अहापडिरूव उग्गहं उगिण्हित्ता णं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरंति ॥ xxतएणते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे य महति महालियाए परिसाणं चाउजामं धम्म परिकेहति । भगवतीसूत्र शतक २ उद्देशा ५ पृष्ट १३६-३८ -एवं खलु देवा. तुंगियाए नगरीए बहिया पुष्फबईए चेइए पासावच्चिजा थेरा भगवंतो समणोवासएङ्गि इमाह एयारूवाइ वागरणाई पुच्छिया-संजमेणं भंते ! किं फले ? तवे किंफले ? भगवती सूत्र शतक २ उद्देशा ५ पृष्ट १४० +-ते] कालेणं तेण समएण पासावचिज्झे केशीणाम कुमार समणे जाइसंपण्णे x x ततेण केसीकुमार समणे चित्तस्स सारहिस्सतीसेमहति महालियाए महव्व परिसाते चाउज्झामं धम्मॅकहेइ राजप्रश्नी सत्र पृष्ठ २१५-२२१ Jain Edue International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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