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आचार्य केशीश्रमणं का जीवन ]
[ वि० पू० ५५४ वर्ष
Matrimurwanama
प्रकाश होने से अन्धकार का नाश हो जायगा है तब उधर इधर भ्रमण करने वालों को ठीक रास्ता मालूम होगा।
तर्क-हे गौतम ! अन्धकार कौन सा और उद्योत करने वाला सूर्य कौन सा है ?
समा०-हे भगवान ! इस पारापार लोक के अन्दर मिथ्यात्वरूपी घोर अन्धकार है जिसमें पामर प्राणी अन्धे होकर इधर उधर भ्रमण करते हैं परन्तु जब तीर्थकररूपी सूर्य केवल ज्ञान रूपी प्रकाश में भव्यात्माओं को सम्यग्दर्शन रूप अच्छा सुन्दर रास्ता दिखला देगा तब उन्हीं रास्ते से जीव सीधा स्वस्थान पहुँच जावेगा । यह उत्तर सुन के देवादि परिषदा प्रसन्नचित्त हो रही थी।
हे गौतम ! यह आपने ठीक कहा परन्तु एक और भी प्रश्न मुझे करना है। गोतम-फरमावो भगवान।
(१२) प्रश्न-हे गौतम ! इस अनादि प्रवाह रूप संसार के अन्दर बहुत से प्राणी शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित हो रहे हैं उन्हों के लिए आप कौन सा स्थान मानते हो कि जहां पर पहुँच जाने से फिर जन्म मरण ज्वर रोग शोक की वेदना बिल्कुल ही न होने पावेगी।
उ.-हे भगवान् ! इस लोक में एक ऐसा भी स्थान है कि जहां पर पहुँच जाने के बाद किसी प्रकार का दुःख नहीं होता है।
तर्क-हे गौतम ! ऐसा कौनसा स्थान है।
समा-हे भगवान ! लोक के अग्रभाग पर जो निवृत्तिपुर ( मोक्ष) नाम का स्थान है वहां पर सिद्धावस्था में पहुँच जाने पर किसी प्रकार का जन्म ज्वर मृत्यु आदि दुःख नहीं हैं अर्थात् कर्म रहित होकर वहां जाते हैं अतः अव्यावाद सुखों में विराजमान हो जाते हैं।
केशीस्वामी-हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा बहुत अच्छी है और अच्छी युक्तियों द्वारा आपने इन सब प्रश्नों का उत्तर दिया है । परिषदा भी यह प्रश्न सुन के शांत चित्त और वैरागरस का पान करती हुई जिनशासन की जयध्वनि के शब्द उच्चारण कर विसर्जन हुई।
इन प्रश्नोत्तरों के अन्त में केशीश्रमण ने अपने शिष्यों के साथ जो पहले चार महव्रत थे उसको भगवान गौतम स्वामी के पास पांचमहाव्रत स्वीकार कर लिया । इस प्रकार भगवान महावीर के शासन की आराधना करते हुए केशीश्रमण परमपद को प्राप्त हो गये।।
इसी प्रकार मुनि कालिसीवेसीर आदि ने भी महावीर शासन को स्वीकार कर के मोक्ष प्राप्त की तथा मुनि गंगियाजी३ वगैरह और भी बहुत से साधुओं ने भगवान महावीर के शासन का आलम्बन कर अपनी आत्मा का कल्याण किया। १-एवंतु संसए छिन्ने केसी घोर पराक्कमे । अभिवंदित्ता सिरसा गोयमंतु महाजसं ॥ पंच महन्वय धम्म पडिवज्जइ भावओ । पुरिमस्स पच्छिमंमि मग्गे तत्थ सुहावहे ।।
उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २३ . २-तएणंसे कालासवेसियपुते अणगारे थेरे भगवते वंदइनमंसई वंदित्ता नमंसित्ता चाउजामाओ धम्माओ पंचमहव्वइया सपडिक्कमणं धम्म उवसंपजित्ताणं विहरई।
___ "भगवतीसूत्र शतक १ उ०१ पृष्ट १६"
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