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________________ वि० पू० ५५४ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास धर्मं का खूब प्रचार किया । आपने महावीर के दीक्षा के सातवें वर्ष मुंडस्थल नगर में महावीर का दर्शन कर वहाँ महावीर का मंदिर बनाया । "कल्प सूत्र ( ४१ ) कौशाम्बी नगरी के महाराजा संतानीक और आपकी पट्टराणी मृगावती भी जैन थे जिन्हों की बहन जयन्ति बाई ने भगवान महावीर के पास जैनदीक्षा ग्रहण करी थी । महाराजा संतानीक के पुत्र राजा दाई आदि भी पक्के जैन थे । “भगवती सूत्र” "उत्पातिक सूत्र (४२) कपिलपुर के जयकेतु राजा भी जैन थे । ( ४३ ) कांचनपुर के महाराजा धर्मशील भी जैन थे । “उत्तराध्यन सूत्र” (४४) हस्तिनापुर के राजा श्रदीनशत्रु और श्रापकी महाराणी धारणी भी जैन थे जिन्हों के पुत्र सुबाहुकुमार ने भगवान के पास दीक्षा ली थी । "विपाक सत्र ' (४५) ऋषभपुर नगर के महाराजा धनबहा और सरसावती राणी जैनधर्मानुयायी थे । आपके पुत्र भद्रनंदी ने प्रभु महावीर के पास जैनदीक्षा ग्रहण की थी। " (५२) चम्पानगरी के राजादत्त और रत्तवतीराणी जैनधर्म को प्रेमपूर्वक आपके पुत्र महिचन्द्र ने राजऋद्धि और ५०० अंतेवर का त्याग कर जैनदीक्षा ली थी । (४६) वीरपुरनगर के महाराजा वीर कृष्ण मित्र और रतिदेवी जैनधर्म श्राप के पुत्र सुजातकुमार ने महावीर के पास जैनदीक्षा लेकर उसका सम्यक् प्रकार से (४७) विजयपुर नगर के वासवदत्त राजा और कृष्णादेवी जैनधर्मोपासक सुवासवकुमार ने महावीर के पास जैनदीक्षा ली थी । " विपाकसूत्र” ( ४८ ) सोगंधिकानगरी के अहत नामक राजा जैनधर्म के बड़े भारी प्रचारक थे, आपके पुत्र महचन्द्रकुमार ने भी जैनदीक्षा ग्रहण की थी । " विपाकसूत्र” " ( ४९ ) कनकपुरनगर के प्रीचन्द्र राजा भी लैन थे, आपके पुत्र वैश्रमणकुमार ने भी भगवान वीर प्रभु के पास दीक्षा लेकर स्वपर कल्याण किया था । “ विपाकसू त्र" (५०) महापुरनगर के बलराजा सुभद्रादेवी जैनधर्मोपासक थे, श्रापके पुत्र महाबलकुमार ने ५०० अंतेवर और राज्य त्याग कर जैनदीक्षा ली थी । “विपाकसूत्र” (५१) सुघोषनगर के श्रर्जुन राजा भी जैन थे आप के पुत्र भद्रनन्दी ने बड़े वैराग्य के साथ भगवान महावीर के पास जैन दीक्षा ग्रहण करी । “विपाकसूत्र” पालन करते थे, “ विपाकसूत्र” " विपाकसत्र " पालन करते थे, पालन किया । थे, आपके पुत्र ( ५३ ) साकेतनामानगर के राजा मित्रनन्दी और श्रीकान्ता राणी जैनधर्मोपासक थे, आपके पुत्र वरदत्तकुमार ने भगवान महावीर के चरण कमलों में भगवती जैन दीक्षा को ग्रहण कर स्वपर कल्याण किया । “विपाक सूत्र” (५४) श्रमल कम्पानगरी के राजा सेत जैनधर्मी थे, जिन्होंने भगवान महावीर प्रभु के श्रागमण समय बड़ा ही जोरदार स्वागत किया था । "राय पसेणीसूत्र' २८ Jain Educationternational ( ५५ ) श्वेताम्बिकानगरी के राजा प्रदेशी और सूरिकान्त कुँवर भी जैनधर्म के परमोपासक थे । राजा प्रदेशी कठिन व्रत-तपश्चर्या करके सूरयाम नाम का देव हुआ एक भव कर मोक्ष जायगा । " राय पसेणीसूत्र” For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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