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________________ आचार्य केशी श्रमण का जीवन ] ( २६ ) श्रवन्तीनगरी के महाराजा चंडप्रयोधन जैनधर्म बड़ी रुचि से पालन करते थे । “उत्तराध्ययनसूत्र” (२७) कपिलपुरनगर के महाराजा संयति ने भगवती जैनदीक्षा को पालन कर अक्षय सुख को प्राप्त किया था । "उत्तराध्ययनसूत्र” [वि० ( २८ ) दर्शानपुरनगर के महाराजा दर्शनभद्र जैन थे उन्होंने एक समय भगवान महावीर का स्वागत बड़ा ही शानदार किया था पर मन में ऐसा अभिमान आया कि भगवान के उपासक अनेक राजा हैं पर मेरे जैसा स्वागत शायद ही किसी ने किया हो ? यह बात वहाँ पर आये हुए शकेन्द्र को ज्ञात हुई जिसने वैक्रय से अनेक हस्तियों के रूप बनाये कि जिसको देखते ही राजादर्शानभद्र का गर्व गल गया। अब वह इस सोच में था कि इन्द्र के सामने मेरा मान कैसे रह सके । आखिर उन्होंने ठीक सोच समझ के महावीर प्रभु के पास भगवती दीक्षा स्वीकर कर | यह देख इन्द्र ने आकर उन मुनि के चरणों में शिर झुका कर कहा हे मुनि सच्चा मान रखनेवाले संसार भर में एक श्राप ही हो, दर्शानभद्रमुनि ने उसी भव में मोक्ष प्राप्त करली | "उत्तराध्ययन सूत्र” (२९) आवंतीदेश के सुदर्शननगर के महाराजा युगबाहु और उनकी महाराणी मैारया पक्के जैन थे । पू० ५५४ वर्ष “उत्तराध्ययन सूत्र” (३०) चम्पानगरी के महाराजा दधीबाहन भी जैनधर्मोपासक थे जिन्हों की पुत्री चन्दनबाला ने " कल्पसूत्र' भगवान महावीर के पास सब से पहले दीक्षा ग्रहण की थी ( ३१ ) काशीदेश के महाराजा शंख ने भी भगवान के पास दीक्षा धारण कर कल्याण कर लिया था । "ठाणासँग सूत्र" उत्तराध्ययन सूत्र " (३२) विदेह देश मिथलानगरी के महाराजा नमिराज ( ३३ ) कलिङ्गपतिमहाराजा करकंडू ( ३४ ) पंचालदेश कपीलपुर के स्वामी महाराज दुमई (३५) गंधारदेश पुंडवर्धननगर के नृपति निग्गई एवं चारों नृपति कट्टर जैन श्रभ्यास करते चारों को साथ ही में ज्ञान हो श्राया और नाशमान संसार का त्याग कर प्रहण कर आत्म कल्याण कर लिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only 6 "" 39 ( ३६ ) सुग्रीवनगर के महाराजाबलभद्र जैनश्रमणोपासक थे । आपके एकाएक मृगापुत्रनामक कुमार भगवती जैनदीक्षा पालन कर संसार का पार कर दिया था । "उत्तराध्ययन सूत्र अ० ११" (२७) पोलासपुर के राजाविजयसेन जिन्हों के पुत्र श्रमन्ताकुमार ने भगवान् महावीर प्रभु के पास "अन्त गददशांग सूत्र” दीक्षा ले के संसार का अन्त किया । "भगवती सूत्र " ( ३८ ) सावत्थि नगरी के राजा श्रदीनशत्रु आदि भी परम जैन थे । ( ३९ ) सांकेतपुर नगर के राजा चन्द्रपाल जिन्हों के पुत्र ने महावीर प्रभु के पास दीक्षा ली थी । “उत्तराध्ययनसूत्र” ( ४० ) क्षत्रियकुन्द नगर के राजा नंदवर्धन जो भगवान महावीर के वृद्धभ्राता थे । श्रापने श्रहिंसा 33 33 थे । अध्यात्म का उन्होंने जैनदीक्षा " उत्तराध्ययन सूत्र” २७ www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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