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________________ वि० पू० ५५४ वर्ष] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास १-राजगृह नगर का शिशुनागवंशी महाराजा श्रेणिक-आप राजा प्रसेनजित के उत्तराधिकारी थे। आपने शुरू से बौद्धधर्म की शिक्षा पाई थी और उसी धर्म के उपासक थे, परन्तु श्रापका विवाह वैशाली के महाराजा चेटक की पुत्री चेलना के साथ हुआ था। महारानी चेलना कट्टर जैन उपासिका थी। उसने बड़ी कोशिश के साथ अपने पतिदेव को जैनधर्म के तत्त्वों को समझा कर जैनधर्म के उपासक बनाये । राजा श्रेणिक ने जैनधर्म की विशेषता समझ कर जैनधर्म का खूब ही प्रचार किया । केवल भारत में ही नहीं पर भारत के बाहर विदेशों में भी प्रचुरता से प्रचार किया था। आपने बहुत से जैन मन्दिर बनवा कर मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी करवाई थी। हेमवन्तपट्टावली से ज्ञात होता है कि कलिंग की खंडगिरि पहाड़ी पर आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का मन्दिर बना कर उसमें स्वर्णमय मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई थी। उसी मूर्ति का जिक्र महामेघवान चक्रवर्ती महाराज खारवेल के शिलालेख में आया है जिसको हम आगे चल कर बतायेंगे। महाराजा श्रेणिक जिनभक्ति में इतना लीन था कि वह हमेशा १०८ स्वर्ण के जौ ( चावल ) बना कर जिन प्रतिमा के सामने स्वस्तिक किया करता था। यही कारण है कि उसने धर्म की प्रभावना करके तीर्थकर नाम कर्म उपार्जन कर लिया जो अनागत चौबीसी में पद्मनाभ नामक तीर्थकर होंगे। २- चम्पा नगरी का महाराजा कोणिक (अशोकचन्द्र ) आप राजा श्रेणिक के पुत्र और उत्तराधिकारी थे। आप भगवान महावीर के पूर्ण भक्त थे। आपको ऐसा नियम था कि भगवान महावीर प्रभु कहां बिराजते हैं जिसका पता मिलने से ही अन्न-जल ग्रहण करते थे । आज की भांति तार डाक का साधन नहीं था फिर भी उसने मनुष्यों की ऐसी डांक बैठा दी थी जिसकी हमेशा खबर आया जाया करती थी। "उपपातिकसूत्र" ३-पाटलीपुत्र नगर के राजा उदाई-आप महाराजा कोणिक के पुत्र एवं उत्तराधिकारी थे। आपने चम्पानगरी को छोड़ कर अपनी राजधानी पाटलीपुत्र में कायम की। श्राप बड़े ही शान्तिप्रिय धर्मज्ञ एवं आत्म-कल्याण करने में ही संलग्न थे। किप्ती षडयंत्रवादियों द्वारा धर्म के विश्वास पर आपके जीवन का अन्त कर दिया गया। ___ " श्रेणिक चरित्र" ४-वैशाली नगरी का महाराजा चेटक-आप भगवान महावीर के पूर्णभक्त थे, एवं बारह व्रतधारी श्रावक भी थे। जैनसिद्धान्तों में आपका विशेष वर्णन आता है। “भगवती सूत्र" ५-२२-काशी कोशल देश के १८ गणराजा-ये भी भगवान के परमभक्त थे। भगवान की अंतिम अवस्था में पावापुरी नगरी में आकर महाराजा चेटक के साथ पौषधवत किये थे। “ निरियावलिका सूत्र" २३-सिन्धु सौवीर देश का वितभयपाटण का महाराजा उदाई और पटराणी प्रभावती-ये दोनों भगवान महावीर के परमभक्त थे और इन्होंने भगवान के चरणों में जैन दीक्षा लेकर मोक्ष की प्राप्ति कर ली थी। " भगवती सूत्र" २४-वितभयपट्टण का राजा केशीकुमार--ये महाराज उदाई के भगिनी पुत्र (भानजा) थे वह भी जैनधर्मोपासक थे। “भगवती सूत्र" २५-ब्राह्मणकुड नगर के राजा ऋषभदत्त-आपने भगवान महावीर के पास दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त कर ली थी। __ " भगवती सूत्र" Jain Educa & International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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