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आचार्य केशीश्रमण का जीवन ]
[वि० पू० ५५४ वर्ष
एक तरफ तो पोर उपसर्ग को सहन करना और दूसरी ओर उत्कृष्ट तपश्चर्या फिर विचारे कर्म तो रह ही कैसे सकते थे ? अतः जम्बु नामक प्राम के पास रजुबालका नदी के किनारे पर सोमक के खेत में अशोक के वृक्ष के नीचे छट का तप गोधों आसन और शुक्लध्यान की उच्चश्रेणी में अध्यात्म चिन्तवन करते हुये ज्ञानावर्णिय, दर्शनावणिय, मोहनीय और अन्तराय इन चारों घनघाती कर्मों को क्षय कर प्रभु महावीर ने कैवल्यज्ञान कैवल्यदर्शन को प्राप्त कर लिया। आत्मा पर जो कर्मों के दलक के पर्दै थे वे दूर होते ही प्रभु लोकालोक के चराचर पदार्थों के द्रव्य गुण पर्याय को हस्तामलक की मुआफिक देखने लगगये।
इस सुअवसर को जान कर इन्द्रादि असंख्य देव-देवी महोत्सव करने को आये । प्रभु ने देव मनुष्य और विद्याधरों को धर्मदेशना दी, पर उस समय किसी ने व्रत नहीं लिया। दूसरे दिन देवों ने समवसरण की रचना की, उस पर विराजमान हो भगवान महावीर ने अहिंसा परमो धर्मः पर व्याख्यान दिया।
भगवान के उपदेश का अधिक प्रभाव वेदान्तियों के निष्ठुर यज्ञ पर हुआ । यही कारण है कि इन्द्रभूति आदि ११ यज्ञाध्यक्ष महान् पंडितों ने अपने २ दिल की शंकाओं का समाधान करके वे स्वयं तथा उनके ४४०० छात्रों ने भगवान महावीर के चरण कमलों में दीक्षा ग्रहण की और प्रभु के शिष्य बन गये फिर तो कहना ही क्या था ? प्रभु ने चतुर्विध संघ की स्थापना की और यज्ञ में होते हुये असंख्य निराधार मूक प्राणियों को अभयदान दिलवा कर उस पापवृति को समूल नष्ट कर दिया और उस समय की विषमता एवं वर्ण ज ति उपजाति और नीच ऊंच के मिथ्या भ्रम का शिर फोड़ कर सब को समभावी बना कर प्राणी मात्र को अपना कल्याण करने का अधिकार दे दिया।
भगवान् महावीर ने ३० वर्ष तक चारों ओर घूम घूम कर जैनधर्म का खूब प्रचार किया । कई नर नारियों को दीक्षा देकर अपने शिष्य बनाये, जिस में १४००० मुनि और ३६००० साध्वियाँ तो मुख्य थे। इसी प्रकार १५९.०० श्रावक और ३३६००० श्राविकाएं व्रतधारियों में अग्रेश्वर थे इनके अलावा जैनों की संख्या उस समय +४०००००००० कही जाती है।
भगवान महावीर के लिए अनेक पौर्वात्य और पाश्चात्य धुरंधर विद्वानों, संशोधकों और इतिहासज्ञों ने अपना मत प्रगट किया है कि भगवान महावीर जैनधर्म के संस्थापक नहीं, परन्तु उपदेशक एवं प्रचारक थे। इस विषय में मैंने बहुत से प्रमाण जैनजाति महोदय प्रन्थ के प्रथम प्रकरण में उद्धत कर दिये हैं और उनके अलावा भी अनेक प्रमाणों से यह बात स्पष्टतया निश्चित हो चुकी है कि भगवान महावीर एक ऐतिहासिक पुरुष थे और उन्होंने अहिंसा का खूब जोरों से प्रचार करके प्राणीमात्र को जीने का अधिकार प्राप्त करा दिया था और यज्ञ यागादिक में दी जाने वाली बलि को उन्मूलन करके ब्राह्मण धर्म पर भी अहिंसा की जबरदस्त छाप जमा दी थी इत्यादि । भगवान महावीर का जीवन जगत के कल्याण के लिए हुआ था । भगवान महावीर के अहिंसा परमोधर्मः एवं स्याद्वाद सिद्धांत का प्रभाव केवल साधारण जनता पर ही नहीं परन्तु बड़े २ राजा महाराजाओं पर भी हुआ था । अतः कतिपय राजाओं के नाम यहाँ उद्धत कर दिये जाते हैं ।
+ "भारत में पहिले ४०००००.०० जैनथे, उसी मत से निकल कर बहुत लोग अन्य धर्म में जाने से इनकी संख्या घट गई, यह धर्म बहुत प्राचीन है, इस मत के नियम बहुत उत्तम हैं, इस मत से देश को भारी लाभ पहुँचा है"।
"बाबू कृष्णनाथ बनर्जी, जैनिजम"
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