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भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
सावस्थी नगरी में जाकर आचार्य हरिदत्तसूरि ने लोहित्याचार्य को शास्त्रार्थ में परास्त कर उनके १००० शिष्यों के साथ जैन दीक्षा दो और उनको महाराष्ट्र प्रान्त में धर्म प्रचारार्थं भेजे । पृष्ठ ३
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श्री विदेशी आचार्य ने उज्जेन नगरी के राजा जयसेन रानी अनंगसुन्दरी और आपके लोतासा पुत्र केशी कांवर को दीक्षा दी बाद वही केशीश्वमण पार्श्वनाथ के हतुर्श पट्टधर आचार्य हुए । पृष्ठ 1wjainelibrary.org