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________________ सिवसरि का समाधान १५८० | झामा जाति की उत्पत्ति दुष्काल में मन्दिर का शेष कार्य ब्रह्मदेव ने कराया | सुराण जाति की उत्पति १५.२ कुंए तलाव बैमाचार्य की विद्या मंत्रों का चमत्कार नाहर जाति के विषय गच्छ वीरों की वीरता उस समय धर्म का रक्षण कैसे किया? मन्दिरों के गोष्टिक बनाने में २८ भगवान महावीर की परम्परा जनता की धर्म पर श्रदा का कारण नागपुरिया तपागच्छ १५०३ २९ विबुध प्रभसूरि कोरंट गच्छ का इतिहास गोहिलाणी नौलखा भुतेड़िया पिपाडा ३० जियानन्दसूरि किसी भी क्षेत्र की संकीर्णता से पत्तन हीरण गोगद शिशोदिया रूणीवाल ३. रविप्रभसूरि समाज की बागडोर भाचार्यों के हाथ में | वेगाणी हिंगद रायसोनी झामड़ छोरि ३२ यशोदेव सूरि बनेत्तरों को जैन बनाना या सामड़ा लोढ़ा सुरिया मीठा नाहर | ३३ प्रथोम्नसरि महाजन संघकी उदारता जडियादि जातियों १५०४ ३४ मानदेवसूरि उपवा. कोरंट नामावली आँचल गच्छीय कटारिया रत्नपुर ३५ निमलचन्द सूहि कोरंटाचार्य बीकानेर में सेठयादि २० जातियों १५०४ ३६ भा० उद्योतन सरि वंशावलियों की वही श्री पूज्यकों मलधार गच्छ-पगरिया गोलिया गिरया- ३७ आ० सर्वदेवसूरि (१) मा० नमसूरि और घुड़सवार गेहलदादि १८ आ० देवसूरि सम्बाद में उपदेश का प्रभाव पूर्णिमिबागच्छ-साह सियालादि ३९ आ० सर्वदेवसूरि (२) धादीवाल जानिकी उत्पत्ति शाखाए ११९३) नाणावाल गच्छ दहा कावड़ियादि ४० आ० यशोभद्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि रातदिया भैरू की पूजा-बली का. सुरांणा गच्छ-सुराणा संखला मणवटादि इतिहास के अभाव का कारण सरिजी के उपदेश का प्रभाव पल्लीवाब गच्छ-धोखा बोहरादि धारण व्यवहार का ज्ञान रातदिया जाति की उत्पत्ति केदरसागच्छ-बंब गंग गहेलडादि मन्दिर मूर्तियों के शिलालेख संखलेचा जाति की उत्पत्ति १४९५ सांढेरागच्छ-भंडारी गुगलिया चतुर प्रतिहार कक का शिलालेख बोत्थरा जाति की उत्पत्ति वृहसपागच्छ-ललवाणी लोकड उफरिया हथुड़ी के राठौरों का , मिनि जाति की उत्पत्ति लोढा घरयादि भनेक जातियों ओसियों के मन्दिर का , खिषसरा जाति की उत्पत्ति एक जाति में अनेक गच्छों में नाम का एक खण्डित प्रपास्ति , मांडोतादि कई जाति की उत्पत्ति कारण उपकेशगच्छ चार्यों की प्रतिष्ठा बांठिया-कवाद जाति की उत्पत्ति १४९९ | एक अंग्रेज विद्वान् का कथन करवाई के शिलालेख शाह-हरखावत क्यों कहलाये ? सूरीश्वरजी के शासन में ककुदाचार्य की संतान के शिला. पररिया जातियों की उत्पत्ति दीक्षिए सिद्धाचार्य की संतान के , सिंधी जाति की उत्पत्ति प्रतिष्ठाए द्विवन्दनीक शाखा के भ. देवरिया जाति को उत्पत्ति १५०० यात्रार्थ संघ कोटाचार्यों के म०के० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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