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________________ " ४८ आचार्य ककसरि १४३३ डिहूपुरनगर भैसाशाह 16 भैसाशाह के संघ के कवित्त बाप्पनाग-गधाशाह सरिजी अपनी लघुना करते (वि० सं० १०७४-१००) भैसाशाह से लक्ष्मी का कोप तीर्थङ्करों का समवसरण १४६५ गुजरं में पाटण की स्थापना भाचार्य ककसूरि की कृपा का विस्तार से वर्णन किया पाटण नरेश की संघ व्यवस्था धर्म पर भैसा की अटूट श्रद्धा सूरिजी के शासन में दीक्षाएं चैत्यवासियों की प्रभुता छाणों के कंडे सुवर्ण के , प्रतिष्ठाएं नाहटा जाति का श्रीचन्द ११३६ | भैसाशाह के किये हुए दो कार्य ., संघ यात्रा भोजा की पत्नी मोहनी ने झवेरात का हार भैसाशाह के राज खटपट " कुए तलाव बनाकर प्रभु के कण्ठ में धारण मिन्नमाल में जा बसना , वीर वीरांगणा दम्पति का संवाद गदइया सिक्का का चलन दुकाल में सिद्धसूरि का भागमन ककसूरि भिन्नमाल में १४५९ | उपकेशगच्छ में खटकुप शाखा भोजा के साथ ३४ दीक्षाएं संघ सभा का आयोजन यक्ष मेहतर को गच्छभार सूरिजी का विहार नागपुर सरीश्वरजी के शासन में १४५२ । कृष्णर्षि का चमत्कार शाह करमण का यात्रार्थ संघ दीक्षाएं नागपुर में सेठ नारायण की ४०० संघपति सात लक्षा-माला मूर्तियों की प्रतिष्ठाएँ कुटम्ब के साथ जैनधर्म की दीक्षा संघ को सुवर्ण मुद्रा पहरामणी तीर्थयात्रार्थ संघ नारायण ने किल्ला में मन्दिर उपकेशपुर चतुर्मास १४४१ दुकाखों में धान वस्त्रघास सूरिजी के कर कमलों से प्रतिष्ठा पानी में बप्पनाग० मूलो युद्ध में काम आना सतियां हीना कृष्णार्षि का चमत्कार कन्धि सप्तभट्ट, मेहकरण का कुवा तलाव वापियों सिद्धसूरि के पट्ट पर दो आचार्य श्रेष्ठि शाह भाणा के पु० उदा की दीक्षा "४९ आचार्य देवगुप्त सूरि १४५५/ कक्कसूरि मारोट कोट में चन्द्रावती में चतुर्मास किल्ला खोदने से मूर्ति निकली ३६० परमारों को जैन बनाये (वि० सं० ११०८.११२४) सूरदेव राजा का मन्दिर १९७५ डामरेलनगर गुलेच्छ पना शाकम्भरी में उपद्रव शान्तिमुनि त्रिभुवनगढ़ के राज को कुंवर चोखा का सम्बन्ध गोसल शान्ति और नये जैन बनाना प्रतिबोध और जैनमन्दिर की पुत्री रोल्ली के साथ कर दिया १४५६ संघ को उदारता रोटी बेटी व्यवहार विणाबाद और देवगुप्तसूरि १७७ सूरिजी का उपदेश चोखा का वैराग्य सुरिजी का चतुर्मास शाकम्भरी में डामरेलमें विद्यावाद विवाह की तैयारियाँ लग्न कर दिया संचेती फागु के मन्दिर की प्रतिष्ठा चोखा रोली का सम्बन्द ५०-आचार्य सिद्धसरि १४७९ हि० अर्जुन की आगम भक्ति १४४२ दोनों दीक्षा की तैयारी में (वि० सं० ११२८.११७४) शिकार जाते हुए सरदार भनुकरण में ४२ दीक्षाएं १४५९ भिन्नमाल में भैसाशाह के पुत्र धवल राव भाभड़ को उपदेश देवगुप्तसूरि भिन्नमाल में देवगुप्तसूरि ने धवल को उपदेश जैन धर्म और आभद जाति भागमपूजा छत्तीस सहस्त्र मुद्रा माता का मोह पिता की भाज्ञा रावजी का बनाया जैनमन्दिर भैसाशाह की माता का संघ धवल की दीक्षा इन्द्रहंसनाम राव आभड़ की वंशावली १४४४ आते समय पाटण में ईश्वर सठे बोस्थरा लाखण का संघ देवी की प्रेरणा मेदपाट में विहार भैसा तो हमारे यहां पाणी भरते हैं इन्द्रहंस को तीर्थ पर सूरिपद भाघट नगर में चतुर्मास भैसाशाह ने घृत तेल का सौदा उपकेशापुर से कदर्पि पाटण में भृमण-मथुरा में कोरंट गच्छीय तेलिया घीवानन्दी में सिद्धसूरि का पाटण में चतुर्मास सर्वदेवसूरि से मिलाप माण्डवगढ़ की दुकानों में कदर्पि का मन्दिर बनाना नाहटा भासक का संघ यात्रा १४४६ | गुर्जरों से भैसा पर पाणी हाना छुड़ाया वीरसूरि का विघ्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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