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________________ , प्रतिष्टाएं " तलाव , दुकाल में " ९४१५ दपाट देवपट्टन एक्गुससूरी का आगमन ह चतरो भोली लादुक व्याख्यान में मनुष्यजन्मादि , संघादि तीर्थ के संघसुब मुगए पुनदादि की दीक्षा सूरिपद लादुक निर्धन की विपत में चैत्यवासियों की शिथिलता देव पटन में योगी का माना मालेचया जाति की उत्पति , वार की वीरता छडुक की श्चद्धा की परीक्षा इस जातिका वंश वृक्ष ४६ आचार्य देवगुप्तसरि १३८९ भनायासे द्रव्य की प्राप्ति १४१३ सूंड वाघमार जाति की उत्पति इसजाति के किये हुए शुभकार्य (वि० ०११-१०१३) । सरिजी की सेवा में योगी दशपुर मंत्री सारंग रली चन्द | लाडुक के साथ योगो की दीक्षा मल जाति की उत्पत्ति छाजेड़ जाति की उत्पति सोमसुन्दर को जाब. सूरिपद चन्द्र की दीक्षा-पद्मप्रभनाम गरुड़ जाति की उत्पति सरिपद विहार की विशालता इस जातिका वंश वृक्ष कार्य १३६२ वंश वृक्ष और शुभकार्य गांधी जाति की उत्पत्ति पावागढ़ में रावलाधा को उप. १३६३ चार भाइयों की चार शाखाएं गुदेचा जाति की उत्पति १३९३ | गरुड़ पारस-फलोदी का मन्दिर हेलरिया जाति की उत्पति धर्म घोष ५०० मुनि फलोदी में चतु. प्राग्वट भूतका संघ पहरामणी । आचार्य के शासन में दीक्षाएं भूता की दीक्षा विनयरूचिनाम गरूड़ जाति के शुभ कार्य सरस्वती की आराधना वरदान १३९ भूरा जाति की उत्पति प्रतिष्ठाएं सोमसुन्दर नन्दीश्वर की यात्रा छावत जाति की उत्पति १४२२ संघादि यशोभद्र सूरिका जीवन तलाब कए जम्बुनाग मुनि लौद्रवा नगरमें १०१ ब्राह्मणों से बाद दुष्काल में ब्राह्मण लड़का का दुवतिया वीर-विरांगणएं सरिजी पाळीमें सूर्य की विद्या राजा का वर्ष फल लिखना पांच तीर्थों की हमेशा यात्रा मन्दिर और प्रतिष्ठा ४५ आ. ककसरि १३७० आधाट नगर में सरिजी : १४०३ जम्बु नाग के ग्रन्थ (सं. ९५२-१०११) पांच स्थानों पर एक साथ प्रति० जिनभद्र. पचप्रभ की दीक्षा गोसलपुर जगमल्ल मोहन सका कुवे में पानी पद्मप्रभ की व्याख्यान रसिकता सिद्धसूरी का आगमन पाटण का राजा मूलराज हेमचन्द्रसूरि-कुमारपाल उपदेश का जबर प्रभाव सरिजी की आकाश विद्या याचना-बलात्कारमोहनादि १३ दीक्षाएं गिरनार का जिन भूषण रात्रि में विहार सेनपल्ली मुनि सुन्दर को सूरिपद (ककसूरि) वल्लभी में अवधूत का आना विसानाइदेवी. त्रिपुरा का संदेश १५०५ विहार की विशालता दीक्षाएं १३८५ पट्टावकी तथा शिलालेख नागपुर से डामरेल राजा का दान ब्राह्मण सदाशंकर का मंत्र १३७६ देव. नागपुर में चतुर्मास देवी मंत्र साधान-वचन सिद्धि नक्षत्र जाति की उत्पत्ति १३७५ | गुलेच्छदेवाकी ज्ञान भक्ति श्रावक यशोदिस्य की सहा. नक्षत्र जातिकी शाखाएं मा० शासन में दीक्षाएं पुन: पाटण में पनप्रम प्रतिष्ठाएं कागजाति की उत्पति राणी के योगाभ्यास का संघादि इस जाति का वंश वृक्ष कार्य पद्मप्रभ ने योग साधना बायरेचा जाति की उत्पत्ति कक्षा तळाब १३८३ अजमेर में शास्त्रार्थ-विजय बंश वृक्ष और शुभकार्य बीर की वीरता सूरीश्वरजी के शासन में दीक्षाए मा० कक्कसूरि के जीवन ४७ आचार्य सिद्धपरि १४११ " , प्रतिष्ठाए परिजी के शासन में दीक्षाएं १३८५ (वि० १०१३-१001) , संपादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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