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भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास उत्तरार्द्ध
भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास पूर्वार्द्ध की दो जिल्दे पाठकों की सेवामें पहुच गई जिनको पढ़ने से आपको ज्ञात हो चूका है कि इसमें जैनधर्म का कितना विस्तृत इतिहास आया है कि आजपर्यन्त ऐसा ग्रन्थ कहीं से प्रकाशित नहीं हुआ होगा खैर अब पाठकों यह जिज्ञासा अवश्य रहती होगी कि - इस ग्रन्थ के उत्तरार्द्ध में क्या क्या विषय आवेंगे ? अतः यहां पर संक्षिप्त से बतला देना अच्छा होगा कि - १- भगवान् पार्श्वनाथ के ५१ से ८४ पट्टधर आचार्यों का जीवन तथा उनके शासन में भावुकों की fare मन्दिरों की प्रतिष्ठाए तीर्थों के संघादि शुभकार्य -
२ - भगवान् महावीर के ४० वॉपट्टधर से विर्तमान के श्राचार्यों का जीवन तथा उनके जीवन के शासन सम्बन्धी कार्यों का इतिहास जितना मुझे मिला है।
३ – तीर्थाधिकार इसमें प्राचीन अर्वाचीन तीर्थों का इतिहास उनकी उत्पति मन्दिरों- मूर्तियों की प्रतिष्ठा का समयादि सब हाल लिखा जायगा ।
४ - गच्छाधिकार - भ० महावीर के पश्चात् किस समय से तथा किस कारण से और किस पुरुष द्वारा कौन सा गच्छ उत्पन्न हुआ यो तो ८४ गच्छ कहे जाते हैं पर मेरी शोध खोज से ३१० गच्छों का पता
गया है ।
५ - जैनशासन के अन्दर जैसे पृथक २ गच्छ निकले हैं वैसे कई मत्त एवं पन्थ भी निकले उन लोगों ने अलग मत्त पन्थ निकाल कर क्या किया ?
६ - चैत्यवासी अधिकार चैत्यवास कब से क्यों और किसने किया चैत्यवास के समय जैन समाज की दशा तथा साथ में राज महाराजा पर चैत्यवासियों का प्रभाव, चैत्यवास में विकार कब से हुआ ओर चैत्यवास के हटाने से समाज को क्या क्या हानी लाभ हुआ ?
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- पट्टावली - अधिकार जैनधर्म में जितने गच्छ हुए उन गच्छों की पट्टावलियाँ सब तो नहीं मिलती हैं पर जितनी मिली है उनकों लिखी जायगी
८ - जैन जातियों - जैनाचार्यों ने जैनों को प्रतिबोध कर जैनधर्म में दीक्षित किये बाद किस कारण aaaaaaa बनी जिसका विवरण | साढ़ा बारह न्यात प्रान्तवर ८४ जातियों वगैरह
- श्रागमाधिकार - जैनधर्म के मूल अंगोपांग आगमों के अलावा किस समय किन किन आचार्यों ने किस किस विषय के ग्रन्थों का निर्माण किया ।
१० - जैनधर्म कहां तक राष्ट्र-राजाओं का धर्म रहा अर्थात् कहाँ तक राजा महाराजा जैनधर्म के उपासक बन कर रहे बाद जैन लोग राजाओं के मंत्री, महामंत्री सेनापति दीवान प्रधानादि उच्चाधिकार पर रह कर देश समाज एवं धर्म की किस प्रकार सेवा की इत्यादि ।
इनके अलावा और भी कई छोटी बड़ी विषय लिखी जायगी
पूर्वार्द्ध की अपेक्षा उत्तरार्द्ध लिखने में हमे बहुत सुविधा रहेगी कारण पूर्वार्द्ध लिखने में हमकों बहुत कठनाइयों का सामना करना पड़ा है जिसमें अधिक मुश्किली तो प्रमाणों के लिये उठानी पडी है इस विषय का खुलास मैंने प्रस्तावनादि में कर दिया है कि उस समय केप्रमाण बहुत कम मिलते है वह भी केवल एक मेरे इस ग्रन्थ के लिये ही नही पर किसी विषय के लिये क्यो न हो पर प्रमाण के लिये सबकों यही अनुभव करना पड़ता है । यही कारण है कि पूर्वार्द्ध में अधिक प्रमाण वंशावलियो पट्टावलियों से ही लिये गये है जब उत्तरार्द्ध के लिये बहुत से ऐसे प्रमाण मिल सकते है कि जिनको हम ऐतिहासिक प्रमाण कह सकते है। पट्टावलियों वंशालियों भी सर्वथा निराधार नही पर उनमें भी इतिहास की बहुत सामग्री भरी पडी है शेष समय पर -
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