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________________ शंखपुर. राव कानद सुवर्ण मुद्रा की प्रभावना | ३३-आचार्य कक्कमरि ८४८ धमा फेफों और भीमदेव शाह पातका प्रभाव ( वि. १४०.४८०) भीम के पैरों में सर्प सं. १२९ का जनसंहार दुकाल शिवपुरी पशोदित्य चोरडिया सिद्धसरि का भागमन पाता की प्रतिज्ञा मैना को पुत्र के अभाव चिन्ता उपदेश का प्रभाव दुकाल में सर्व द्रव्य व्यय देव पर भटल श्रद्धा संवाद सूरिजी और भीमदेव देवी की आराधना-थेली दूसरी शादी का आग्रह माता और भीम का संवाद पात्ता की परवाही पत्री व्रत की दृढ़ता भीम के साथ ३. दीक्षाएं धर्म का प्रभाव सेठ सेठानी का दृष्टान्त मुनि शान्ति सागर नाम ८१६ सरिजी का भा० उपदेश चौगसी देहरी का मन्दिर सिन्ध भूमि में विहार चक्रवर्ति की ऋद्धि का सेठानी का मनोरथ पूर्ण डामरेल नगर का राव चणोट पाता के साथ ७२ दीक्षाएं पुत्र का नाम शोभन अहिंसा धर्म का उपदेश शास्त्रार्थ में बोद्धों का पराजय सुरिजी का आगमन मुनि शान्ति सागर और सन्यासी उपकेश-प्रमोद०-सरिपद मन्दिर की प्रतिष्ठा सूरिजी का समझाना भार्बुदाचल को यात्रा शोभन की दोक्षा सन्यासी की दीक्षा देवी की भविष्य वाणी सरिपद नाम कक्कसूरि डामरेल मगर में शान्ति को सरिपद | देवप्रभादि मुनियों का माना भीनमाल में कुंकुन्द आचार्य भन्यमुनियों को पदवियां शवपुरी-शोभन के मन्दिर की कोरंटाचार्य ननप्रभसूरि क्षणक बादी का प्रश्न प्रतिष्ठा व शोभन को दीक्षा ककसूरि भोग्नमाल में सरिजी का विस्तार से उत्तर म्लेच्छों के हमले मन्दिरों का रक्षण व्याख्यान एवं उपालम्ब क्षणकबादी की दीक्षा मेदपाट में बोलों का उत्पाद कुकंद की कोमलता तक्षशील की ओर विहार सरिजी भाघाट नगर में तीनों सरियों का चतुर्मास तीर्थ को पुनः प्रतिष्ठा मथुरा के बोद्ध और सरिजी देवी का शुभागमनश्रेष्टि हाप्पा का यात्रार्थ संघ बेदान्ति कपालिका की दीक्षा। सुरिजी की तपभावना तीर्थ पर हाप्पा की देक्षा और कुंकंद मुनि माम . शिवपुरी में सरिजो मथुरा में बोरों का पराजय भद्रगोत्र सरवाण के संघ में मार्बुदाचल की यात्रा चंदेशी में उपद्रव की शान्ति-२५ छन्द को कोंकण को भाज्ञा संघ को शंकट से बचाना देवी की प्र० से उपकेशपुर में सूरिजो का चतुर्मास पाली में मारोट कोट और सोमाशापह ८५४ रात्र भालहक की भाग्रह पाली में श्रमण सभा मुद्रका में गुरुचित्र संघ सभाका का आयोजन कुंकुन्द की भावना राजाने सोमा को केद कर दिया मुनि प्रमोदरस्न को सरिपद कुकुन्द भीनमाल में गुरू भष्टक से बेडियो तुटी शासन में दीक्षाएं सरिजी उपकेशपुर में भरोच में गुरु दर्शनार्थ तीर्थ यात्रार्थ संघ आचार्य पदकी योग्यता दुर्विचार और देवो की सजा मन्दिरों को प्रतिष्ठाएं | भाचार्य की आठ संप्रदा ८४. देवी का प्रत्यक्ष भाना बन्ध ३२-आचार्य यक्षदेवमूरि ८३१ उप० सोमप्रभ को सरिपद आदि के दो नाम भण्डार (वि० सं० १२४.४४०) | यक्षदेव सूरि का स्वर्गवास सरिजी का शासन प्रति करणावती नगरी सूरिजी के शासन में दीक्षा उपकेशगच्छ में १६ शाखाएं भट्ठारह गौत्रों में कनोजिया. " तीर्थों के संघ | रिजी का विहार दक्षिण में शाह सारंग, पांचवार तीर्थों के संघ मन्दिरों की प्र० बापिस मावंती में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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