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________________ सूरिजी उपकेशपुर में मोक्ष मार्ग के दो रास्ते मनिधर्म पर व्याख्यान भाव की प्रधानता किसान का दृष्टान्त मथुरा के मन्दिर की प्र. मुनि-गुणतिलक को सूरिपद मथुरा में सूरिजी का स्वर्गवास शासन में दक्षाएं क संघ १९५ " तीर्थों के संघ , प्रतिष्ठाएं गाजी का विहार और भनार्य देवगुप्त सूरि की महिमा सुनी अपदेश देकर जैन बनाना और परीक्षा कर नमस्कार किया भामरेक के महादेव का परिग्रह परिमाण | शत्रुम्जय पर सूरिका स्वर्गवास सम:शिखर तोर्थ का विराट संघ | सूरिजी के शासन में दीक्षाएं हाथ पर देवियों का आना संव तीर्थ पा महादेवादि १६ की दीक्षाएं प्रतिष्ठाएं मुंनि कल्याण कलश को सूरिपद २५-आचार्य श्री सिद्धमुरि पूर्व की और विहार .१६ सरिजी के शासन में दीक्षाएं (वि. सं २८२.२९८ ) | उपकेशपुर के श्रेष्टि जैसा , प्रतिष्ठाएं चाम्पा का पुत्र सारंग २४-आचार्य श्री देवगुप्त सूरि६६६/ देवगुप्त सूरिका आगमन (वि० सा० १६०२८२) जेता को उपदेश और नियम चंद्रावती के कुमट डावर सारङ्ग पर सूरिजी की दृष्टि सूरिजी का विहार और पनो का पुत्र कल्याण सारङ्गका घरसे निकलना अक्कसूरी का भागमन सिद्धपुरुष की सेवा व्याख्यानों में सामुद्रिक शास्त्र स्वर्ण सिद्ध को प्राप्ती कल्याण का वैराग्य गरीबों का उद्धार माता पुत्र का संवाद सौपार से उपकेशपुर का संघ सूरिजी और डावर स्वर्ण का सदुपयोग कल्याण को दीक्षा व सूरिपद तीर्थ यात्रार्थ संघ सूरिजी चन्द्रावती में मन्दिरों का निर्माण डाबर, पक्षा को उपदेश सूरिजी का पुनः आगमन सन्यासी का प्रश्न मन्दिर की प्रतिष्ठा व सोने की प्रभावना शिवराजर्षि का दृष्टान्त पन्य के साथ लक्ष्मी उर्व अधो और मृत्युलोक जेता एवं सारंग आदि ५६ की दीक्षाएं ईश्वर ने सृष्टिकी रचना नहीं की सौभाग्य कीति और सृस्पिद अन्यासी की दीक्षा भाचार्य शत्रुक्षय की ओर वर, पन्नाआदि ३२ दीक्षाए सिद्ध पुरुष भी शत्रुतय पर मौज में सूरिजी दोनों को आपस में भेंट जसमा में व्याख्यान आत्मा के विषय की चर्चा सा का जैन धर्म स्वीकार करना तापस की दीक्षा तपोमूर्तिनाम के बनवाये हुये मन्दिर व सौपार पट्टन में पदार्पण प्रतिमा क प्रतिष्ठा सूरिजी का व्याख्यान म मुनियों को पदवियाँ लोभ और कपिलका दृष्टान्त कि दीक्षा हुने के कारण ५. नरनारियों की दीक्षा नयों ने सीमंधर स्वामी के मुख से | नागपुर में प्रतिष्ठा कदर्पियक्ष शत्रुजय ६९९ वज्रसेन सूरि मधुमती में बनकर के दो स्त्रियां अभक्ष्य-कारण घरसे निकलना सूरिजी की भेंट गरसी के प्रत्याख्यान मांस से मर कर कपर्दी स्त्रयों ने सरिपर आक्षेप किया राजा सूरिजी को पकड़ना नगर पर शिजाएं बरसाना क्षमा की याचना शजय का अधिष्ठा [१५] आचार्य चन्द्रसूरि ७०० सौपार पटन दुमज जिनदास एवं ईश्वरी के घर भिक्षार्थ साधु विष का प्रयोग तीन दिनों को शर्त सुकाल-चार पुत्रों की दीक्षा [१६] सामंत भद्रसूरि जंगलों में रहना कठोर तपश्चर्य ग्रन्थों का निर्माण [१७] आचार्य वृद्धदेवसूरि ७०१ चैत्यवास शिथिलता कोरंटपुर में महावीर चैत्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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