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________________ अनुरूदका लग्न जैनों की उदारता राजामलदेव द्वारा संघ सभा १९ भारतीयों का पाश्चात्य प्रदेश से संबंध | शाकम्भरी का राज व नागभट्ट सूरिपद और सरिजी का स्वर्गवास एशिया, अफगानिस्थान, तुर्कीस्थान, रनभूषण को सूरिपद सरिजी के शासन में दीक्षाएं साइबेरिया, जावद्वीप, लंका, मफ्रिका | | सूरिजी का स्वर्गवास "" " तीर्थों के संघ सिंधु नदी, भबीसीनिया, युरोप, युनान, | | शासन दीक्षा-संघ प्रतिष्ठाए सरिजी के शासन में प्रतिष्ठाएं रोम, अमरिका २१ आचार्य रत्नप्रभसरि ६११ भादित्यनाग की चोरलिया शास्त्रा। महाजन संघ की पञ्चायत ५९१ (वि० सं० १९९-२१८) । शिला लेख भादि प्रमाण १३२ पञ्चयतियों की व्यवस्था हंसावली का जसा-निधन २२ श्री यज्ञदेव सूरि ६३५ और शास्त्र पञ्चायतों का न्याय वाचक धर्मदेव का (वि. सं. २१८-२३५) न्याय के उदाहरण निरधन जस्सा सत्यपुर के सुचंतिगौत्रीय काह कात्रण टॉड साहब का मत पातोली को सिंह का स्व. व मांगी का पुत्र धर्मसी २०-आचार्य सिद्धसरि ५९६ असा को पारस मिला सन्यासी का भागमन (वि० सं० १७७-१९९) पातोलोने तलाव खुदाया ब्रह्मचर्य व्रत का महत्व माण्डन्ध पुर का श्रेष्टि नागदेव ककसूरि का भागमन ब्रह्मचारी सुदर्शन ६३९ नागदेव का तीसरा विवाह श्री भगवती सूत्र की पूजा धर्मसी भादि १८ को दीक्षाएं २७ पुत्रों में तेजसी भागों को लिखाना बक्षदेव सरी भिन्नमास में कक्क सूरि का आगमन मन्दिर का कार्य प्रारम्भ ब्राह्मणों की ईर्ष्या तेजशी का वैराग्य माता की मोह दशा पुत्र जन्म-राणा नाम सच्चे ब्राह्मण-वेदोसति ५७ भावुकों की दीक्षा ९६ भांगुल सुवर्ण की मूर्ति १५ । ब्राह्मणों ने जैन धर्म स्वीकार किया सिंध में चतुर्मास व १७ दीक्षाएं गुरु मूर्ति को चर्चा मथुरा में बौद्धों का पराजय ६५५ मुनियों को पदवी प्रदान मन्दिर की प्रतिष्ठा सूरिजी का चतुर्मास चित्रकूट में राज हंस को उपाध्याय पद दुकाल में उदारता इकवीस भावुकों की दीक्षा सूरिजी का स्वर्गवास तीर्थ यात्रा का संघ दुष्काल और देशक सिद्धसूरि का पद महोत्सव संघपति राणा की दीक्षा जगा और सच्चायिका शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा सरिपद रत्नप्रभ नाम २२२ भोसवालो का दान वल्लभी में श्रमण सभा सत्यपुरी में चतुमास जगाशाह के कवित्त वल्लभी में बौद्धों का पराजय ५९९ लाखणादि १८ दीक्षाए सरिजी के शासन में दीक्षाएं सारस्थ पति पदवी नागपुर देवा का संघ सूरिजी के शासन में तीर्थों के संघ सूरिजी का दक्षिण में विहार १०३ | पंच पंचमुद्रिए प्रभावनायें " प्रतिष्ठाएं मदुरा, मानखेट में चतुर्मास दक्षिण की ओर विहार २३ आचार्य श्री कक्कसरि ६५१ पुनःभावन्तिप्रदेशमें भावंति मंत्री रूघवीर वीरशेखर और सन्यासी मथुरा में बोद्धों का पराजय (वि. सं. २३५२६०) मन्त्र बाद में मुनि की विजय ६०३ तक्षशिला में चतुर्मास लोहाकोट में मन्त्री नागसेन सन्यासी की जैन दीक्षा भद्र, बापनाग मंत्री दीक्षाए पक्षदेव सरि का भागमन भाघाट नगर में चतुर्मास ६०४ कोरंट में दो आचार्य नागदेव का पौषध व्रत श्रेष्टि गौत्री मंत्री मुकन्द का संघ चन्द्रावती के मंत्री की दीक्षा ६२५/ संस्तार पौरसी की गाथा । उपकेश पुर में चतुमांस नागपुर में ७ दीक्षाए राना एवं मंत्रिका संवाद सार्वभौम-महा दुष्काल उपकेशपुर-चतुर्मास १२७ मन्त्री को दोध एवं सूरि पद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १२२
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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