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रिया में पज्ञ योजना | मथुरा में धर्म की प्रभावमा
धनदेव पुनः धनवान पर ने यज्ञ विध्वंस कर डाला सरिजी महबर में
५६६ | धनदेव के साथ १४ दीक्षाएं मणों का श्राप
५५३ उपकेशपुर सुचम्ति गौत्र भनका महो- आचार्य देवगुप्त सूरि के शिष्य मराव सहित कुवर पाषाणवत एसव व चतुर्मास ११ दीक्षाएं
धर्म मूर्ति लग्धि संपम पार्वती की आराधना
हंसावलो महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा राज सुन्दर ज्योतीष में न: सावधान सरिजी कोरंधपुर में
पनकक-परकाय में र उमरावों से ७२ जातियां ५५३ नमप्रभ सूरि से मिलाप
नगप्रभ-भाकाशग. १जातियों के माम
कक्क सूरि का बिहार मथुरा की भोर न्याय मुनि शास्त्रार्थी सन को पुनः श्राप
हंसावली के शा. जसा की प्रार्थना | जैन व्यापारी-प्रकरण ५८२ वजन की सन्तान जागा संघपति राणा
ज्ञाता सूत्र में भहन सेठ समय की समालोचमा ५५५ तीर्थ पर दीक्षा
श्रीपाल का जहाजी व्यापार हेश्वरी और अमांस भोजी पुन. कोरंटपुर में
ऋषभ दत्त के दासियां भोसवाल माहेश्वरी सम्बन्ध देवी का भागमन
भानन्दादि श्रावकों का व्यापार १८--आचार्य कक्क सूरि ५५८ विशाल मूर्ति को सूरिपद
सम्राट चन्द्रगुप्त का राज्य (वि० सं० १५७-११) कक्क सरि का स्वर्गवास
सम्राट सम्प्रति का राज्य विस्तार कोरंटपुर में प्राग्वट लका शासन में दीक्षाएं
भारन की जातियां उजता देवी का दोहळा शासन में तीर्थों के संघ
ऐतिहासिक प्रमाण त्रुम्जय तीर्थ की रचना शासन में मन्दिर प्रतिष्ठाएं
चीनी मुद्राओं का इतिहास पुत्र का नाम त्रिभुवन
१६-श्री देवगुप्त सूरि ५७४ मृच्छ कटिक नाटक काळा का स्वप्न सूरीजी का उपदेश (वि. सं. १७४ १७७) लाकुपेरी फ्रांसी वह्मचर्य का वर्णन
नागपुर के आदित्यनाग गौत्रीय पाश्चात्य प्रदेशों में भारतीय व्यापार अपुत्रस्याति स्ति | भेरा व नंदा को देवदर्शन
ग्रीस के एरियन कामत बह्मचर्य की नव बाद ५॥ पुत्रनम्म, धनदेव नार
ग्रीस देश के इतिहास का मत मानेकानि सहस्त्राणि सरि का व्याख्यान
नाव द्वीप के इतिहास का मत वाग्रत की गुप्ति 'शा. भेरा की भावना
युनानी डीस माइस का क्या मत आठ-प्रकार रक्षण सूरि का चतुर्मास
अलेक जैडियस पादरी ब्रह्मचारी साधु भगवती सूत्र का महोत्सव
मिश्र के लाल जाति के, भुवन का दृढ़ निश्चय
शा. भैरा मन्दिर बनवाया भारतीय व्यापारी नगर ५२ नर नारियों की दीक्षा सम्मेत शिखरजी का संघ
भारत के धन कुंवर व्यापारी त्रिभुवन का नाम देवभद्र संघ में १८४ देरासर
प्राचीन भारतवर्ष की शिव नगर का राव गें।
संघ का विस्तार शिव नगर में मन्दिर की प्रतिष्ठा
सभ्यता का प्रचार १५सनों की दीक्षा माता और धनदेव का संवाद
(सरस्वती का लेख) ५४० मुनि देवभद्र को सरिपद भैरा की दीक्षा
व्यासजी व सुखदेवजी की यात्रा भीपुर के श्रेष्ठि राजपाल के
धनदेव से लक्ष्मी का रुष्ट होना पाण्डवों को दो बार यात्रा द्वारा पूर्वका संघ ५६५ आचार्य कक्क सूरि नागपुर में राजासागर की पृथ्वी विजय भूरिजी का मथुरा में चतुर्मास धनदेव का परिचय
धृत राष्ट्र का पाणि महण म्यास्पान में भीभगवती सूत्र सूरिजी का उपदेश
अर्जुन का विवाह Jain Education International For Private & Personal Use Only
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