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राणा का विराट् संघ बचावती का राज और राणा जय की यात्रा
सूरिजी का कच्छ सिंध में बिहार निमय व्यवहार की चर्चा पजाब में विहार
कलिङ्ग की यात्रा
मेहपाट - मरुधर में सूरिजी बीरपुर में
नास्तिकों का जोर
राज कम्पा सोनक
बीरसेम की दीक्षा
सोमककस नाम
शिक्षा में पदार्पण
मंत्री के द्वारा सम्मेतशिखर का संघ
पूर्व प्राम्स में सर्वत्र बिहार
देवी की प्रसन्नता
बाद विजय का वरदान
तीतरपुर की राज सभा में पुनः बीरपुर
ड. सोमकलस को सूरिपद कोरं गच्छ के सर्वदेव सूरि सोमकलस को सूरिपद
यत्र का जन्म- शान
बचको सुनि के चरण में अर्पण मन की परीक्षा और दीक्षा
वज्र की देवों ने परीक्षा
उपाधी को बाचमा
भद्रगुप्त
को
भावुक की दीक्षाएं तीर्थों के संघ
मन्दिरों की प्रतिष्ठाएं
[१३] आर्य वज्रस्वामी ४८३
सुनन्दा - धमगिरि
धमगिरि की दीक्षा
स्वम
पूर्वधर- सूरि पद मन्त्र सूरि पाटलीपुत्र में को पति करने का ह
रुक्मणि की दीक्षा
४७३ दुष्काल में संघ रक्षा
४७७
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४७८
१३.
४८६
पूजा के लिये पुष्पों का वज्रसूरि के समय मूर्तिवाद सूरि को सूठि का विस्मरण सूरि का स्वर्गवास
सूरि की दो घटनाएं
४८७
15 - आर्य समितिसूरि ४८८ ब्रह्मद्वीप में पांचसौ तापस
पादलेप से अलपर चलना
समिति सूरि का ब्रह्मद्वीप में जाना
५०० तापसो को जैन दीक्षा
महाद्वीपी शाखा
16 - आर्य रक्षितसूरि ४८९
अय की स्थिति
दशपुर में उदयन राजा ब्राह्मण सोमदेव-रुद्रसोमा आरक्षित फल्गुरक्षित आर्य रक्षित का पढ़कर आमा राजा प्रजा के द्वारा स्वागत दृष्टिवाद पढ़नेकों जाना तोसकीपुत्राचार्य और रक्षित की दीक्षा प्रथम शिष्य स्फोट कावज्रसूरि के पास पढ़ना फल्गुरक्षित को बुलाने के लिये भेजना फल्गुरक्षित की भी दीक्षा
४९०
माना
आर्य रक्षित सूरिपद आर्य रक्षित का दशपुर माता पिता को दीक्षा देना चार अनुयोग पृथक करना आरक्षित के पास इन्द्र का आना ३०० वर्ष की आयुका अनुमान भार्यं रक्षित का स्वर्गवास गोष्ट मालिक का अलग
17 - आर्य नंदिलमूरि ४९४ वैराव्या की विस्तार कथा श्रीशत्रुञ्जय तीर्थका उद्धार ४९५
४९२
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बोद्धों के हाथ में शत्रु अर्थ जावड़शाह का उद्धार
भावद का पूर्व वास
भागढ़ के घर दो मुनि भविष्य का निमित्त
जावड़ का जन्म
भावड़ के अधिकार में १२ प्राम के आक्रमण
जावड़ को ग्लेच्छों ने पकड़ किया धन प्राप्ति
व्यापार
मुनियों का उपदेश तक्षशिला से मूर्ति
का
जहाजों में तेजमन्तरी
४९७
४९८
पक्ष का उपद्रव बज्रसूरि की विजय तीर्थ का उद्धार (पुनः प्रतिष्ठा) पाहिका से शत्रुजका संघ १७ - श्री यक्षदेवसूरि ४९९
(वि. ११५ – १५७ ) वीरपुर व वीरसेन सोनकदेवी की सत्य प्रतिज्ञा लग्न के समय देव देवी को मात ? सोनक का प्रतिक्रमण पाखण्डियों की गुरुकंठी सोनल का सुसराल रस्नप्रभसूरि का आगमन पाखण्डियों का पराजय सोमल का पतिदेव को उपदेश राजा राणी आदि ४५ की दीक्षा सोमकलस को सूरिपद यक्ष देव सूरिनाम
प्रभाव
वज्रसेन के समय बारह वर्षीय दुष्काळ ५०४ यदेवसूरि की आगम वाचना चन्द्र नागेन्द्रादि को ज्ञान- पदवी मुग्धपुर पर म्लेच्छों का आक्रमण ५०७ मुनि व श्रावकों से मूर्तियों का रक्षण खच्कुप संघ का अपने पुत्रों को दीक्षा के लिये देना
५०१
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