SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ ४४१ पात्रुअप में गदलिप्तपुर नगर । भरोंच पर भाक्रमण और सूरिजी भद्रेश्वर सूरि की कथावली ५० रान सभामें पण्डित सिद्धसेन का स्वर्गवास हेमचन्द्र सूरि का योग शास्त्र चार शास्त्रों का सार श्लोक में 10 13 आचार्य जीवदेवमूरि ४४८ मलपगिरि का ज्योतिष क. पादलिस सूरि का योग से मरण उ.विनयविजयजी लोक प्रकाश वायट नगर में धनदेव-शीलवंती. ११ विरोधी पण्डित के उद्गार दो पुत्र महिधर-महिपाल । दो वाचनाए' में पाठान्तर ४५८ पादलित सूरि के ग्रन्थ जिनदत्त सरिव महिधर की दीक्षा) देवर्द्धि के पूर्व सूत्र लिखा जाना पादलिससूरि का स्वर्गवास रसील सूरि नाम आगम वाचना महिपाल की दि. दीक्षा गुरु शिष्यों को वाचना मुकुन्द वृद्ध ब्राह्मण जैन दीक्षा स्वर्ण कीर्ति नाम - गणधर पद ज्ञानाभ्यासवताना विद्याओं की प्राप्ति पाटलीपुत्र में वाचना क्या मुसल फूलाभोगे? दोनों मुनि वायट में एकादशाङ्ग पूरे देवी की भाराधना व वरदान स्वर्ण कीर्ति की दीक्षा और दशवैकालिक राज सभाओं में वाद-जय जीवदेव सरि नाम तीन छेद सूत्र मूसल का फूलाना जीवदेव सूरि के चमत्कार भार्य रक्षित ने चार अनु. वृद्धवादी सूरि का विहार साधु की जबान बंद सोपार पट्टन में वाचना सिद्धसेन की भेंट साध्वी पर चूर्ण ४४६ मथुरा में भागम वाचना जंगल में शास्त्रार्थ पास का पुतला लोक संख्या का प्रमाण मध्यस्थ गोपाल राजा विक्रम ने निम्बा मंत्री द्वारा आगों का संक्षिप्त करना सिद्धसेन की असमयज्ञता महावीर मन्दिर का जीर्णोद्धार भागमों की संख्या ८४ गौपालों का निर्णय बल्ल सेठ का यज्ञ और हिंसा से घृणा | योगो द्वाहन १५ भागमों के मुनि भिक्षा के लिये 12 सिद्धसेन की दीक्षा व सरिपद ४५. निगम वादी मत बल्ल का सरिजी से जैनधर्म स्वीकार करना उनके २६ निगाम प्रस्थ सिद्धसेन सूरि और विक्रम ४३ लल्ल के पच्चास हजार रूपये विक्रम संवत् किसने सिद्धसेन चित्रकूट में जैन मन्दिर का बनाना मिले हुए शिलालेख पुस्तक और दो विद्या जैन मन्दिर में मृत गाय सिद्धसेन और राजा देवपाल क्या बलमित्र ही विक्रम था! परकाय प्रवेशिनी विद्या से । विक्रम के चरित्रादि राजा के लिये विद्या का प्रयोग गाय को शिवालय में भेजी १६-आ. रत्नप्रभसूरि तृतीय ४६९ राज्य मान से शिथिलाचारी ४४४ ब्राह्मणों ने सूरिजी के सामने शिर झुकाया वृद्धवादी सूरि की एक गाथा (वि० सं० ५२-११५) ब्राह्माणों से कई शर्ते सिद्धसेन सावधान ओंकार नगर जीवदेव सूरि का स्वर्गवास ४५३ आगमों को संस्कृत में कर देना तप्त भट्ट गौ० पे० कु. मृत गाय की घटना वाले जिनदत्त सूरि बारह वर्ष का प्रायश्चित राजसी की बाल क्रीड़ा रामा विक्रम को प्रतिबोध 14-स्कन्दिलाचार्य ४५४ माँ-बेटा का संवाद महादेव की स्तुति १ युग प्रधान पावली के स्कंदिल राजसी का विवाह पावं मूर्ति प्रकट होना । २ वृद्धवादी को दीक्षा देने वाले , सिद्धसूरि ओंकार नगर में विक्रम राजा का जैन होना ३ हेमवन्त पहावली के सूरिजी का उपदेश कात्रुक्षय का संघ १४७४ माथुरी वाचना के राजसी की दीक्षा भोकार नगर में जैन मन्दिर इन चारों का परस्पर सम्बन्ध ४५५ सूरिपद और रत्नप्रभसूरि नाम सिबसेन और गोपाल (२) ४५५ माथुरी और वल्लभी वाचना १५० सूरिजी पभावती में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६५
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy