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________________ भवानी सहस्त्रनाम घर घोड़े से नगर प्रवेश [४] शय्यंभवाचार्य ११६ मनुस्मृति पूजा के साथ मण्डप में पज्ञ में शय्यंभव स्कन्ध पुराण शुभ मुहुर्त का निश्चय प्रभव के पास दीक्षा प्रभास पुराण कोरंट संघ का आना १०५ मणक पुत्र की दीक्षा बृहदारण्य का पाखण्डियों की पराजय प्रतिष्ठा के लिये प्रार्थना दशवैकालिक सूत्र सस्य की विजय दोनों मन्दिरों का एक मुहूर्त समाज पर रत्नप्रभसूरि का उपकार महाजन संघ की स्थापना सूरिजी दो रूप बनाये रत्नप्रभसूरि का स्वर्गवास भविष्य का महान् काम दोनों मन्दिरों की प्रतिष्ठा यात्रुजय पर सूप पर्युषणों की बाराधना प्रतिष्ठा का समय १०६ सिंहावलोकन देवी के मन्दिर जाने से रोकना ९६ राजा उत्पलदेव की भावना प्रमाणवाद १२२ दशहरे का भागमन पहाड़ी पर पार्श्व मन्दिर प्रत्येक्ष, प्रमाण, उदाहरण देवी का पूजन ब्राह्मण पुत्र को सर्प काटना भनुमान का संयोग सूरिजी के नेत्रों में वेदना सूरिजी द्वारा निर्विष पट्टावलियां भी साधन है चक्रेश्वरी देवी का आना ओ. ऐतिहासिकता १२८ हजारों ब्राह्मणादि जैन चामुण्डा का माफी मांगना चौदह लक्ष नये जैन उपकेशपुर, उ० घंश, उ० गच्छ, करड़-मर का-समाधान १०८ उपकेश शब्द की व्युत्पत्ति १३१ प्रतिष्ठा के कारण साविक पदार्थों से देवी की पूजा शिलालेखों के प्रमाण कोरंट गच्छोत्पति संघ के साथ सूरिजी हेमवंतास्थविरावली १३८ देवी का पुन: प्रकोप कनकप्रभ. को सूरिपद नन्दी सूत्र सूरिजी का उपदेश एनप्रभसूरि का कोरंटपुरजान मथुरा का पोलाक श्रावक देवी की प्रतिज्ञा संघ को उपालम्ब उपकेशवंश की उत्पत्ति देवीको समकित अपने हाथों से सूरिपद चार भैसा शाह लोगों का जैनधर्म स्वीकार पाश्वनाथ म. प्रतिष्ठा १११ चन्दनमलजी मागोरी जैनधर्म का प्रवल उद्योत वि० तरहवीं शताब्दी मनोहरसिंहजी डग्गी ऊहड़ मन्त्री का मन्दिर १०१ म्लेच्छों के हमला आदित्यनाग गौत्रसे चोर० शाखा दिन को बनाना रात्रि में गिर जाना देव मन्दिर में देवी की मूर्ति ओ. उ. २२२ का कारण १४२ सर्व दर्शन वालों से प्रश्न मन्दिर के लिये प्रमाण प्राचीन कवित भाभनगरी सुरिजी का पथार्थ कहना तीर्थों का संघ पक्ष देव सूरि मन्त्री की गाय का दूध यक्षदेव को मूस्पिद वज्रसेन के चार शिष्य गोपाल का निर्णय यक्षदेव का मगद जाना अठारह गौत्रों के प्रमाण अहड़ का सूरिजी से प्रभ पक्ष को प्रतिबोध कल्प सूत्र कल्पद्रुमटीका देवी का ऊहर के पास जाना [३] प्रभवाचार्य ११७ उपकेश गच्छचरित्र. मूर्ति के दर्शनों की उत्कण्ठा धौर क्षत्री-और चोरपली में चन्द्रसूरि से चन्द्रशाखा १४४ भपूर्ण होने से ठहरने का उपदेश नम्बु के साथ दीक्षा कोरंट गच्छ पट्टावही श्रीसंघकी भातुरता धर्म प्रचार प्रभाधिक चरित्र वरघोड़ा और सूरिजी संघ में पट्टधर का अभाव गच्छ मत-प्रबन्ध प्रतिमाजीको भूमि से नि० १०४ शय्यंभव भट्ट तपागच्छ पहावली १४६ रत्नादि पुरुषों से पूजा पशान्तिनाथ की मूर्ति आंचक गन्छ पहाबली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ११२ १४१
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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