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________________ माल के राजा भाण इतिहास लिखना प्रारम्भ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास प्राचीन भारतवर्ष पोरवालों की उत्पत्ति खरतर यति श्रीपालजी ख० यति राम० मुनि चिदानंद ख. वीर पुत्र आनंदसागरजी स्था. मुनि मणिकाळजी वंशावलियां के ३४ प्रमाण एक प्राचीन पत्र का लेख ऐतिहासिक प्रमाण बेसट श्रेष्ठी से समरसिंह तक शिलालेखादि प्रगाण शत्रुचय का शिलालेख मुमि श्रीरत्नविजयजी म. श्वेत हूणों का समय पाटण की स्थापना वल्लभी का भंग शंका जाति की उत्पत्ति इरिभद्र सूरि और महानिशीथ ओखिया के मन्दिर का शिलालेख अटरू ग्राम ५०८ का शिलालेख १८४ वर्ष का शिला लेख वीरात् ८४ शिलालेख विद्वानों की सम्मतियां शबू पूर्णचंद्रजी नाहर सुखसम्पतराजजी भण्डारी अगरचंदजी नाहटा जैन ज्योति पत्र मणिलाल बकोरभाई व्यास नथमलनी उदयमलजी मूलचंदजी बोहरा, अजमेर हंसराजजी मुथा पं. श्रीवल्लभ शर्मा भा. विजयानंद सूरि आ. विजयनेमि सूरि पं. सिद्धविजयजी म Jain Education International पं. गुलाबविजयजी आ. विजयधर्म सूर आ. बुद्धिसागर सूरि १४८ मुमि श्रीरत्न विजयजी म. १४९ १५० 941 १५८ १६७ www.om १७० मुनि श्री विद्याविजयजी म. आबू के मन्दिर का निर्माण आ. विजयलखित सूरि आ. आम्रदेव सूरि ब्राह्मणों के साथ ओसवालोंका सम्बन्धक्यों नहीं ? मुनि श्री दर्शन विजयजी म महेश्वर कल्पद्रुम १७४ द्रव सम्प्रति १७७ प्राचीन शिलालेखों के अभाव का समाधान ? पट्टावलियां उस समय की नहीं हैं ? ओझाजी का मत ओसवालों को हित शिक्षा प्रश्न दूसरे का उत्तर ओ. उ. शंका-समाधान १७५ सूरिजी ने कायर नहीं बनाये जैनधर्म वीर एवं उदारों का है ऐतिहासिक साधन भगवान् महावीर मौर्य कलिङ्ग पति खारवेज ओसवाल संस्था उपकेश का अपभ्रंश भोमिया दो शंकाएं उत्पलदेव कौन था ? ओसवाल मूळ शब्द है ? श्रीमाल नगर की प्राचीनता भोझाजी का मत श्रीमा के राजा १७९ पं. ही. हं. के गौत्र संग्रह में ओसिया में प्रतिहार वच्छराज का राज्य बाबू पूर्णचंद्रजी नाहर मुणोत नेणसी की ख्यात दोनों समाधानों का सारांश रत्नप्रभसूरि नाम के ६ आ० ओसिया में १०१३ का शिलालेख ओसिया का १० ११ का शिलालेख अर्वाचीन कविस गौन व कवित्त की तुलना गौत्र बनने के कारण आठवीं शताब्दी का इतिहासअंधेरे में नहीं हरिभद्र सूरि आदि आचार्य १८७ For Private & Personal Use Only कृतघ्नपने का पाप अघटित प्रश्नों के उत्तर प्रश्न पहले का उत्तर गौ जातियों सूरि ने नहीं बनाई गौत्रों का होना बुरा नहीं गौत्रों की विश्वव्यापकता अन्य धर्मों में भी गौत्र हैं १६३ १९४ सब लोग राज नहीं करते हैं पतन का कारण बुरीआचरण है प्रश्न तीसरे का उत्तर १९५ महाजन संघ बनाया था शुद्धि की मशीन २००० वर्ष क्षत्रियों का जैन होना प्रश्न चतुर्थ का उत्तर जैनधर्म राजसता विहीन जैन जातियों जैनेसर क्यों आचार्यों के विहार का अभाव जैनचार्य की वृद्धि ? प्रश्न पांचवां का उत्तर १९७ १९६ पंथ, मत किसने बनाये ? क्या उनको स्वप्न भी आशाथी ? ओसवाल कायर नहीं थे उन्होंने राज भी किया है ओसवाल उन्नति के सिखर अठारह गौत्रों का कारण ओसवालों में शूद्र नहीं है १०२ भोसवालों का भःसन क्षत्रियों के उपनाम ढेडिया. बलाई चामड चंडालिया २०३ जैनों का पतन क्यों ! १९८ www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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