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सुखशय्या में दम्पति
प्रभवादि चोर ५०० के साथ बम्बु के दृष्टि से चोरों के पैर चोर-दो विद्यालो एक दो
अम्बु का चोरों को उपदेश ५२७ के साथ जनुं की दीक्षा धर्म प्रचार और मोक्ष स्वयंप्रभ सूरि का स्वर्गवास प्राग्वट के लिये प्रश्नोत्तर श्रीमाल के विषय प्रश्नोत्तर ६ - आचार्य रत्नप्रभसूर (वि. पू ४१८-३८६ )
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विद्याधर रथनुपुर नगर महीन्द्रचूड़ - लक्ष्मी राणी रखचूड़ का जन्म रखचूड़की विद्याएं रक्षका विवाह महीन्द्रचूड़ राजा की दीक्षा
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चारण मुनिका आगमन नन्दीश्वर का महात्म्य यात्रार्थ प्रस्थान विमानों का रुक जाना स्वयंप्रभ सूरि का व्याख्यान दीक्षा लेने में एक शर्त -
चंद्रचूड़ - लंका से मूर्ति
प्रतिज्ञा पूर्वक मूर्ति की पूजा मूर्तिसाथ में रख दीक्षा पाँच सौ के साथ रत्त्रचूड़ की दीक्षा
वीरात् ५२ वर्षे सूरिपद ६४
प्रभसूरी ५०० से बिहार देवी की प्रेरणा मरूधर में ० मिध्यासियों से उपसर्ग कष्टों को सहन करना पाखण्डियों द्वारा अपमान रूपकेषापुर तक पहुचन उपकेश पुर की उत्पत्ति ६५ मा का नयसेन राजा
चौदह पूर्व का अध्ययन
भीमसेन चन्द्रसेन दो पुत्र
स्वयं-प्रभसूरि द्वारा जैनधर्म जयसेन का स्वर्गवास
राजा के लिये मतभेद भीमसने को राज ५६ जैनों पर अत्याचार चन्द्रसेन द्वारा चन्द्रावती
शिवसेन द्वारा शिवपुरी श्रीमाल का तुटजान तीन प्रकोट की व्यवस्था श्रीमाल का नाम भिश्रमाछ
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उत्पल कुंवर का अपमान ऊहडकों भोजाई का ताना दोनों मिल नया राजस्थापन
संग्रामसिंह का समागम बनजारों से १८० अश्व टेलीपुर राजा को भेट भूमि की प्राप्ति निमित्त उसकी भूमि पर नगरआबाद
उपवेशपुर नाम करण भीनमाल से लाखों नरनारी पुत्र पिता का ६ मास से मिलना ५०० मुनियों से रत्नप्रभ सूरि
लुणाद्वीप पहाड़ी पर ध्यान
भिक्षार्थं नगर में जाना मांस मदिरा की प्रचुरता
मुनियों की तपोवृद्धि विहार की आज्ञा मुंडा देवी की प्रार्थना ३५ मुनियों से सूरिचतुर्मास
४६५ का कोरंट में चतुर्मास जलण देवी का विवाह पुत्री राजपुत्री मंत्री के पुत्र को मंत्री पुत्र उपचार सब निसफळ
को स्मशान
मंत्री पुत्र राजकन्या सती होने को देवी लघ साधु के वेश में
संसार का अनादित्व
६७ | मनुष्य जन्मादि सामग्री
को सर्प काटा ७२
मुच्छित को सूरि के चरणों में अगुष्ट प्रक्षल का जल छींटा निर्विष हो खड़ा होगया रत्नादि सूरिजी को भेट पर
सूरिजी का सचेट उपदेश ७५
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मनुष्य का कर्त्तव्य
यज्ञ में पशुओं की बली हिंसा का फल मरक देवगुरु धर्म का स्वरूप श्रावक के बारह व्रत आठ कर्म दृष्टांत के साथ ईश्वर जगत का कर्ता नहीं घट द्रव्यादि तास्विक वि० चार निक्षेप दृष्टान्तों के साथ धर्माराधान की खास आवश्यकता
व्याख्यान का प्रभाव और जैनधर्म ८८ स्वीकार करने की भ्रातुरता देव विद्याधरों का आगमन देवी के द्वारा वासक्षेप सवालक्ष क्षत्रियों को जैनधर्म की दीक्षा देना पाखन्डियों का राजा के पास आना
परम्परा का हक्क लगाना
राजा का कोरा जवाब
राजसभा में शास्त्रार्थं जैन नास्तिक नहीं है। जैनधर्मप्राचीन है
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पुराण
नाग पराण १-२
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जैन ईश्वर को मानता है धर्म की प्राचीनता के प्रमाण ९२ ऋग्वेद १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १००
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१११२-१३-१४-१५-१६-१ -१८ ब्रह्माण्ड पुराण
महाभारत १-२
शिव
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