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________________ विषयानुक्रमणिका संसार में विद्वानों की संख्या हमेशों कम से कम हुआ करती है कि वे संक्षिप्त लेख होने पर भी उसका भाव को ठीक समझ सके पर साधारण लिखे पढे कि संख्या विशेष होती है उन लोगों को बोध के लिये सादी सरल भाषा और लेख विस्तारपूर्वक स्पष्ट लिखा हुआ हो तो वे सुविधा के साथ लाभ उठा सकते हैं अतः मैंने जैसे इस प्रन्थ को विस्तार से लिखा है वैसे ही इसकी विषयानुक्रमणिका विस्तार से लिखना समुचित समझा है और इस प्रकार विषयानुक्रमणिका विस्तारसेलिखने में एक दो फार्म बढ़ जायगा पर इतना बड़ा ग्रंथ में एक दो फार्म का खर्चा अधिक हो जाना कोई बात नहीं है पर साधारण जनता विषयानुक्रमणिका पढ़ कर सम्पूर्ण प्रन्थ के भावों को ठीक तरह से समझ ले यही हमारे उद्देश्य की पूर्ति है । विषय पृष्टकि विषय पुष्टांक विषय पृष्टकि मङ्गलाचरण भगवान् पार्श्वनाथ (वि० पू० ८२० से ७२० ) भ० पार्श्वनाथ का शासन प्र० भ० पाश्र्व० कमट तापस भ० पार्थ० अलता सर्प भ० पार्श्व० का मंत्र० धरणेन्द्र भ० पार्श्व० का विवाह 33 भ० पा० वर्षोदान-दीक्षा भ० पार्श्व० के उपसर्गं भ० पा० को केवलज्ञान म० पार्श्व० का उपदेश भ० पा० का निर्वाण ( वि० पू० ७२० - ६९६ ) गणधर के द्वारा धर्म प्रचार नि वरदस और पांच सौ चौर पांचसी चोरों की दीक्षा २ - आचार्य हरिदत्तसूरि १ Jain Education International ३ ३ ४ ५ 23 पाश्चात्य विद्वानों के ग्रन्थों की नामावली,, १- गणधर शुमदत्त 39 "" ७ "9 ८ ( वि० पू० ६९६ - ६२६ हरिदतसूरि का विहार सावरथी नगरी में पदार्पण कोहित्याचार्य से शास्त्रार्थं 39 ९ हजार शिष्यों के साथ कोहिग्य की दीक्षा ८ लोहित्य का महाराष्ट्र में बिहार ४ - आचार्य केशीश्रमण अहिंसा धर्मका प्रचार ( वि० पू० ५५४ - ४७० ) लोहित्य को आचार्य पद 39 महाराष्ट्र में जैनधर्म के विषय प्र० १० ११ डा० फ्रेज साहब का मत प्रोफेसर ए-चक्रवर्ति " बौद्ध साधु धेनूसेन का मत महाराष्ट्र में साहित्य संघ 99 तामिल भाषा का कुरलग्रन्थ " लोहित्याचार्य का निर्वाण ३- श्राचार्य समुद्रसूरि " केशी को जाति स्मरण ज्ञान उपदेश का प्रभाव राजादि को वैराग्य कौणंबी में यज्ञ- योजना केशीश्रमण का शास्त्रार्थ अभयदान और अहिंसा د. ( वि० पू० ६२६ - ५५४ ) यशवादियों की प्रबलता सूरिजी का जबर उपदेश विदेशी • मुनिका उज्जैन में पदार्पण केशी का पूर्वभव पेहित मुनि कपिलवस्तु में मुनि के उपदेश- बुद्ध को वैराग्य बुद्ध का घर से निकलना बुद्ध की जैन-दीक्षा के प्रमाण दि० दर्शनसार ग्रन्थ श्वे० आचारांग सूत्र बौद्धग्रन्थ महवग्गादि डा० स्टीवेन्स एम्पीरियगेय टीयर डा० फहरार का मत स्वयं बुद्ध का कहना बौद्धमत का प्रादुर्भाव 29 राजाराणी केशी वर की दीक्षा | भगवान महावीर १४ 19 " १२ १२ For Private & Personal Use Only "" १३ उज्जैन का राजकुमार दक्षिण के मुनि पूर्व में शेष मुनियों का संगठन भारत की विकट समस्या श्रमण-सभा एवं जागृति मुनियों का अलग र विहार कई राजा पुनः जैनधर्मी ( वि० पू० ५४२-४७० ) १८ २१ भ० म० जीवन के प्रन्थों की मामा० भ० म० जम्म और कुंडली www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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