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________________ ज्ञान नगरा पुश्मिताल अयोध्या सावन्धी अयोध्या कौशांबी बणारसी चन्द्रपुरी काकंदी मदिकपुर सिहपुरी चम्पापुरी पिकपुर पोष्या पुरो गजपुर मथुरा राजगृही मथुरा गिरनार बनारसी ज्ञान तिथी ७१ फागण बद ११ अट्टम तप पौष शु" छहम तप काती वद पौष शु चैत्र शुद्ध ११ चैत्र शुद्ध १५ फाग बद ६ 59 ار 93 33 " Jain Education International 39 कार्ति शुद्ध ३ पौष वद १४ महा बद ३० " शुद्ध २ पौष ६ १४ "9 39 वैशाख वद १४ पोष शुद्ध १५ ९ 39 मेस ३ कार्ति १२ मगसर 19 ११ फाग बद १२ ज्ञान तप 03 55 ७२ " 99 39 13 31 39 99 चौथ भ छटतप " " 15 $. मगसर शुद ११ आ० बद ३० चैत्र वदी १४ बालिकनदी वैशाख शुद्ध १० छह सप " अठम छट्ठतप 39 अहम गणधर ७३ ८४ ९५ १०२ ११६ १०० १०७ 重 प्रथम गणधर ७४ पुंडरिक सिंह सेन चारु बज्रनाभ चरम पद्मोतर ९५ विदर्भ ९३ दिन .. वरहाक ८१ नंद ०६ कौस्तु ६६ सुभूम ५७ मदर ५० ४३ 14 ३५ यस अरिष्ट चक्र युद्ध शब ३३ कुंभ २८ अभिलक १८ मही १७ +11 × १० शुम्म वरदत्त आर्य शुभदन्त ११ ईन्द्रभूति प्रथम आर्य ७५ ब्राह्मी फाल्गु श्यामा भजिता कास्यपि रति सोमा सुमना वारुणी सुयसा धारणी धरणी धरा पद्मा आर्य शिवा शुचि दामिनी रक्षिता मधुमति पुष्पमति अगिला पक्ष दिया पुष्पकुला चन्दनबाला बैक्रिय मुनीबादी सुनि ७६ २०६०० २०४०० १९८०० १९००० ૧૮૪૦ १६१०८ १५३०० १४००० १३००० १२००० ११००० १०००० ९००० ८००० ७००० 8000 ५१०० 0200 २९०० २००० ५००० १५०० ११०० ७०० ०७ १२६५० १२४०० १२००० 11000 १०४०० ९६०० ८४०० ७६०० ६००० ५८०० ५००० ४७०० ३६०० ३२०० २८.० २००० 9800 १४०० १२०० १००० ... ६०० ४०० + कल्पसूत्र में १८ कहा है X कल्पसूत्र में ८ कहा है, शायद दो अल्प समय में मोक्ष गये हो। ६ - तीर्थंकरदेव का रूप मंडलीक राजा, बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती, व्यान्तरदेव, भुवनपतिदेष, - क्योतिषीदेव, वैमानिकदेव, नौमीबैग के देव, चारानुतरवैमान के देव, सर्वार्थसिद्ध वैमान के देव, आहारीक शरीर और गणधरों के रूप की एक रासी की जाय तो उस रूप से भी तीर्थंकरों का रूप अनन्त गुणा है ७ - तीर्थंकरदेव का बल - संसार में मनुष्य देव और तिपच इन सबका बल एक ओर एकत्र करले यो भी तीर्थंकरों का बळ अनन्त गुणा है। सीर्थंकरदेव के वीर्य अन्तराय का सर्वनाश होने से वे अनन्त बली कहलाते हैं । 1 ८-१र्थकरों का वर्षी दान जैसे प्रातः समय से भोजन के समय तक तीर्थंकर भगवान् प्रतिदिन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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