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________________ दीक्षा नगरी ६२ विनीता अयोध्या सावधी अयोध्या " कौशी बणारसी चन्द्रपुरी काकदी भद्धिलपूर सिंहपुरी चम्पापुरी कम्पलिपुर अयोध्या रत्नपुरी गजपूर " " मिथिला राजग्रही मथुरा द्वारामति बनारसी क्षत्री पकुन्ड दीक्षा तिथी ६३ चैतबदी ८ महा बद ९ मगशर शुद १५ महा शुद्ध १२ वैशाख शुद ९ कार्तिक वदी १३ जेठ शुद्ध १३ पो० ब० १३ मगशर बद ६ महा बद १२ फाग बद १३ फाग वद १५ महा शुद ४ वैशा० बद १४ महा शुद्ध १३ जेठ बद १४ वैशा० बद ५ मगर शुद ११) "3 फाग० शुद्ध १२ आसाढ़ बद ९ सावन शुद्ध ६ पोष बद ११ मगशर बद १ दीक्षा तप ६४ छठतप " "" 93 नित्य भक्त छठतप 19 " "" 19 "" चोथ भक्त छठतप 39 99 33 " 99 अठमतप छठतप 39 39 अठमतप दीक्षा वृक्ष ६५ वड वृक्ष शाळ प्रियाल प्रियगु शाल छत्र शिरीष नाग शाली पिथगु १० नन्दि भीलक " भाम्र अशोक चम्पक 99 3 19 19 27 सन्दुक " पाडल "9 99 जम्बु अशोक दधिपूर्ण, " 99 "" " 99 23 " 39 बकुल " वेडस घातकी छठतप शाल 37 " ار " प्रथम पारणो पारणा किसके तपस्या के दिन छद्मस्थ काळ इक्षु रस परम न खीर 19 "1 " ६६ " "1 "" 99 "1 19 " " " " " "9 " " 19 39 33 ६७ श्रेयांस के घर ब्रह्मदत्त सुरेन्द्रदत इन्द्रदत्त पद्म सोमदेव महेन्द्र सोमदत्त पुष्प पुनर्वसु नन्द सुनन्द जयधर विजय धर्मसिंह सुमित्र व्याघ्रासिंह अपराजित विश्वसेन "" "3 " "3 99 " 39 33 29 99 19 99 19 99 39 99 ब्रह्मदत्त दिनकुमार वर दिन्न धन्यनाम बहुल ब्राह्म" 19 99 12 " १ वर्ष दो दिन . " "1 ૧૮ 95 " "" " " $3 " د " " 13 .. 35 33 13 "" "" 95 ६९ १००० वर्ष १२ „ १४ " १८ " २०,, ६ मास ९ ३ 19 ३," ४ " 39 २ " १ .. २ ३ वर्ष دو "3 9 १६ ३ १ अहोरात्र " ११ मास ९ मास ५४ दिवस ८४ दिवस १२ वर्ष ६ ॥ के हस्तांगुष्ट में अमृत का संचार करना ९ - वत्तीस करोड़ सोनाइयों की बर्षाद करना १० - आशीर्वाद देना ११ नन्दीश्वर द्वीप जाकर - अष्टान्हिका महोत्सव कर बाद स्वस्थान जाते हैं । ५- प्रभु के २५० ढाई सौ श्रभिषेक-सूर्य, चन्द्र, वर्जकर ६२ इन्द्रों के ६२, सूर्य के ६६ चन्द्र के ६६ सामानिक देवों का १ गुरु स्थानिक देवों का १ परिषद देवों का १ अंग रक्षक देवों का १ शकेन्द्र की म महिषीदेवियों के ८ ईशानेन्द्र की अग्रमहिषी के ८ सुरकुमार के दो इन्द्रों की श्रममहिषियों के १० नागकुमार के दो इन्द्रों की बारह इन्द्रणियों के १२ ज्योतिषियों की श्रममहिषियों के ४ व्यन्तर देवों की देवियों के ८ अनिका के देवों का १ और शेष सब देवों का १ एवं सर्व मिलकर २५० अभिषेक करते हैं । Jain Education ne www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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