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महापद्म से पूर्व प्रतिज्ञात वर मांगा। महापद्म ने भी उसे देना स्वीकार किया। तब, नमुचि ने वेदोक्त विधि से यज्ञ करने के लिये राज्य माँगा नथुचि का अभिषेक किया और स्वयं जाकर अन्तःपुर में रहने लगा। उसके अभिषेक के बाद जैनमुनियों को छोड़कर सब लोग उसे आशीर्वाद देने आये । तब नमुचि सब लोगों के सामने यह कह कर कि और सब लोग तो अपनी शुभेछाएं प्रगट करने के लिये आये पर जैनसाधु नहीं आये, उन्हें बुलवाया। उन्हें नमुचि ने राज्य छोड़ जाने को कहा और आज्ञा का उल्लंघन करने पर मृत्युदण्ड की घोषणा की। सुव्रताचार्यने कहा कि हम लोगों में सांसारिक शुभेच्छाएं प्रगट करने का आचार नहीं है, इसलिये हम लोग नहीं
आये । पर नमुचि ने उन्हें केवल सात दिन का अवसर दिया कि वे उसका राज्य छोड़ कर चले जायें । तब उन साधुओं ने परस्पर विमर्श किया। उनमें से एक ने कहा कि विष्णुकुमार नामक महामुनि आजकल मेरुपर्वत के शिखर पर है वह महापद्म का बड़ा भाई है, वही नमुचि के क्रोध को शान्त कर सकता है । तब एक साधु ने विष्णुकुमार से जाकर निवेदन किया और वे वहाँ से नमुचि की
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