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पहुंचा । इस विवाद में नमुचि को निरुत्तर हो जाना पड़ा इससे वह चिढ़ गया और मुनियों की हत्या का प्रयत्न किया । इस पर राजा श्रीधर्म ने नमुचि को अपने राज्य से निकाल दिया । तब नमुचि ने हस्तिनापुर में आकर युवराज महापद्म का मन्त्रित्व स्वीकार कर लिया। इसी बीच महापद्म के देश में राजा सिंहबल ने आकर उत्पात किया, उस राजा को नमुचि ने युद्ध में जीत कर बाँधका महापद्म के सम्मुख लाकर उपस्थित किया। इससे प्रसन्न होकर महापन ने नमुचि को उसको इष्टवस्तु मांगने को कहा । नमुचि ने कहा आप अभी यह वर अपने कोश में रखें, समय आने पर माँग लूगा । कुछ काल बाद हस्तिनापुर में नागरि पधारे, राजा पद्मोत्तर ने उनकी देशना सुन कर दीक्षा की इच्छा को । विष्णुकुमार ने भी दीक्षा लेने का निश्चय किया और दोनों ने सुव्रताचार्य से दीक्षा ले ली, महापद्म ने शासन कार्य सम्भाला और वह विख्यात चक्रवर्ती राजा बन गया । विष्णुकुमार मुनि भी उग्रतपादि द्वारा
आकाश गमनादि सिद्धियों को प्राप्त हो गये । सुव्रताचार्य ने वर्षाकाल में हस्तिनापुर के एक उद्यान में चातुर्मास किया । उपयुक्त अवसर देख कर नमुचि ने
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