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समर्थन होता है, वहां भी भारतवर्ष नाम पड़ने का कारण ऋषभदेव के ज्येष्ठपुत्र भरत को बताया गया है । २
इन्हीं नाभिपुत्र श्री ऋषभदेव के सौ पुत्रों में इक्कीसवें पुत्र३ कुरु थे। इन्हीं कुरु के नाम से कुरु नाम का राष्ट्र विख्यात हुआ । प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार इस राष्ट्र की राजधानी गजपुर अथवा हस्तिनापुर थी ।५
२. हं सुरासुरेंद विदद्वंदियचलणारविंदो उसभो नाम पढमो राया जगप्पियामहो श्रासी । तस्स पुत्तसमं । दुबे पहाणाभरहो बाहुबली व उसभसिरी पुत्तसथस्स पुरसयं जणवयस च दाऊण पव्वो । तत्थ भरहो भरहवासचूडामणी, तस्सेव नामेण इहं 'भरहवासं' ति पवुच्चति ।
- वसुदेवद्दिरिड प्रथम खण्डम् पृष्ठ १८६. ३. कल्पसूत्र- सुबोधिका टीका सहित पत्र १७४. ४. शतपुत्र्यामभून नाभिसूनोः सूनुः कुरुनृपः । कुरुक्षेत्रमिति स्थातं राष्ट्रमेतन्तदास्यया ॥ - विविध तीर्थकल्प जिनप्रभसूरि विरचित, हस्तिनापुरस्त वन कल्प पृष्ठ ६४.
( यह हस्तिनापुरस्तवन कल्प विक्रम संवत् १३८६ वैशाख शुदी ६ को लिखा गया था । )
५. गढ़पुरं च कुरु; अभिधानराजेन्द्र भाग २ पृष्ठ ३३६. ।
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