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________________ (७०) क्योंकि, आंखमें मोतीया उतर रहाथा. तथापि श्रावक लोकोंके आग्रहसे "चतुर्थ स्तुति निर्णय " नामा पुस्तक बनाया, जो छपकर प्रसिद्ध होगयाहै.पूर्वोक्त कारणसें चौमासेमें व्याख्यान,"श्री हर्षविजयजी महाराज करते रहे, और श्री सूयगडांग सूत्र, तथा धर्मरत्न प्रकरण सटीक सुनाते रहे. चौमासे बाद श्रीमहिजयानंद सूरि, राधनपुरसें विहार करके शंखेश्वर पार्श्वनाथजीकी, तथा भोयणीमें श्री मल्लिनाथजीकी यात्रा करके, कडी शहेर होकर शहेर अहमदाबादमें पधारे. यहां जुनागढवाले प्रसिद्ध डाक्टर "त्रिभोवनदास मोतीचंद शाह"जो श्रीमहाराजजी साहिबके परम भक्त श्रावक हैं,और जिनोंने श्री महाराज आत्मारामजीकेही उपदेशसें,ढुंढकमतको त्याग करके,सनातन जैनधर्म अंगीकार कियाहै;तिनोंने महाराज श्रीआत्मारामजीकी आंख मेंसे मोतीया निकाला.बाद श्रीआत्मारामजी, अहमदावादमें गोपाल नामा श्रावकको, दीक्षा देकर "श्रीज्ञानविजयजी” नाम स्थापन करके,तदनंतर विहार करके "मेहसाणा" जहां पांचसौ घर श्रावकोंके, और दस जैनमंदिर है,पधारे.और संवत् १९४५ का चौमासा, वहां किया.यहां भी डाक्टरकी मनाई होनेसें श्रीमहाराज आत्मारामजीने व्याख्यान नहीं किया; किंतु " श्री हर्ष विजयजी महाराज""श्रीभगवती सूत्र" सटीक, तथा “धर्मरत्नप्रकरण" सटीक सुनाते रहे. चौमासेमें महोत्सवादि बहुत धर्म कार्य समयानुसार हुवे. परंतु एक कार्य बहुतही अद्भुत यह हुआ कि, दो हजार रुपैये, पुराने पुस्तकोंके उद्दारमें लगाये, और आगेके वास्ते भी श्रावकोंने ज्ञान संबंधी बंदोबस्त कर रखा . इस चौमासेमें कलकत्ताकी “रोयल ऐशियाटिक सोसाईटी” के ऑनररी सेक्रेटरी डाक्टर (भट्ट-पंडित)" ए. एफ. रुडॉल्फ होरनल साहिबने, पत्रहारा शा० मगनलाल दलपतराम मारफत, महाराजजी श्रीमद्विजयानंद सूरि (आत्मारामजी) को धर्म संबंधी कितनेक प्रश्न लिख भेजे थे, तिनके जवाब श्री महाराज आत्मारामजीने, शास्त्रानुसार, ऐसी चतुराईसें लिख भेजे, जिनको वांचके पूर्वोक्त साहिब, बहुत खुश हुए, और महाराज श्रीका बहुत उपकार मानने लगे. पूर्वोक्त अंग्रेज विहान साथ, प्रायः बहुत प्रश्नोचर हुए; जे बहुतसे भावनगरके “जैन धर्म प्रकाश" चोपान्यामें छपगये हैं. तथा पूर्वोक्त साहिबने, “ उपाशक दशांग “नामा जैन पुस्तक अंग्रेजी तरजुमाके साथ छपवाया है; जिसमें श्री महाराजजीका उपकार मानके, बडी भक्तिके सूचक, चार श्लोकोंमें श्रीमहाराजजीका गुणानुवाद करके,तथा अंग्रेजी लेखमें भी बहतस्तति लिखकर वह पुस्तक महाराजजीश्रीको अर्पण कियाहै.' श्री महाराज आत्मारामजीने अहमदाबाद निवासी + अर्पण पत्रिकाके वे चार श्लोक येह है. उपजाती छंद-दुराग्रहध्वान्तविभेदभानो । हितोपदेशामृतसिंधुचित्त ॥ संदेहसंदोहनिरासकारिन् । जिनोक्तधर्मस्य धुरंधरोसि ॥ १॥ आर्या---अज्ञानतिमिरभास्करमज्ञाननिवृत्तये सहृदयानाम् ॥ आर्हततत्वादर्शग्रंथमपरमपि भवानकृत ॥२॥ अनुष्टुप् छंद-आनंद विजय श्रीमन्नात्माराम महामुने ॥ मदीयनिखिलप्रश्नव्याख्यातः शास्त्रपारग ॥ ३ ॥ कृतज्ञताचिन्हामिदं ग्रंथसंस्करणं कृतिन् ॥ यत्नसंपादितं तुभ्यं श्रद्धयोत्सृज्यते मया ॥ ४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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