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(७) श्री स्थूलभद्र स्वामी (श्री सुस्थित सूरि तथा श्री सुप्रतिबुद्ध सूरि
(११) श्री दिन सूरि (१३) श्री वज्र स्वामी
(१५) * श्री चंद्र सूरि (१७) श्री वृद्धदेव सूरि
(१९) श्री मानदेव सूरि
(२१) श्री वीर सूरि
(२३) श्री देवानंद सूरि
(२५) श्री नरसिंह सूरि
(२७) श्री मानदेव सूरि (२९) श्री जयानंद सूरि
(३१) श्री यशोदेव सूरि (३३) श्री मानदेव सूरि (३५) श्री उद्योतन सूरि (३७) श्री देव सूरि
(३९) {श्री यशोभद्रसूरि तथा
सूरि
( ४१ ) श्री अजितदेव सूरि
(४३)
श्री सोमप्रभ सूरि तथा (श्री मणिरत्न सूरि (४५) श्री देवेंद्र सूरि (४७) श्री सोमप्रभ सूरि (४९) श्री देवसुंदर सूरि (५१) श्री मुनि सुंदर सूरि (५३) श्री लक्ष्मीसागर सूरि (५५) श्री हेमविमल सूरि (५७) श्री विजयदान सूरि
(६८)
(८) (१०)
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(१२)
(१४)
(१६)
(१८)
(२०)
(२२)
श्री आर्यमुहस्ति सूरि
श्री इंद्रदिन सूरि
श्री सिंहगिरि सूरि
श्री वज्रसेन सूरि
श्री सामंतभद्र सूरि
श्री प्रद्योतन सूरि
श्री मानतुंग सूरि
श्री जयदेव मूरि
(२४)
श्री विक्रम सूरि
(२६) श्री समुद्र सूरि (२८) श्री विबुधप्रभ सूरि (३०) श्री रविप्रभ सूरि (३२) श्री प्रद्युम्न सूरि (३४) श्री विमलचंद्र सूरि (३६) + श्री सर्वदेव सूरि (३८) श्री सर्वदेव सूरि (४० ) श्री मुनिचंद्र सूरि
- इनोसें 'वनवासी गच्छ" प्रसिद्ध हुआ.
+ इनोसें निर्ग्रथ गच्छका पांचमा नाम “वडगच्छ" पडा.
x इनोसें वडगच्छका नाम तपगच्छ प्रसिद्ध हुआ.
(४२) श्री विजयसिंह सूरि (४४) श्री जगच्चंद्र सूरि
(४६) श्री धर्मघोष सूरि (४८) श्री सोमतिलक सूरि (५०) श्री सोमसुंदर सूरि (५२) श्री रत्नशेखर सूरि (५४) श्री सुमतिसाधु सूरि (५६) श्री आनंदविमल सूरि (५८) श्री हीरविजय सूरि
इनोंने सूरि मंत्रका कोटि जाप किया, इस वास्ते निग्रंथ गच्छका "कौटिक गच्छ ” नाम प्रसिद्ध हुआ.
*
इन कौटिक गच्छका नाम " चंद्र गच्छ
27 पडा.
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