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(६७) बडौदेसें विहार किया. और “छाणी” “ उमेटा, “बोरसद , “पेटलाद" वगैरह शहेरो विचरते हुये, “मातर" गाममें आये. यहां पांचवें तीर्थंकर "श्रीसुमतिनाथ” जो "साचे देव के नामसें गुजरात देश में प्रसिद्ध है, तिनके अपूर्व दर्शन पाये. और इन देवके समक्षही, “पाटनं" शहरके रहनेवाले, "लेहराभाई” जिसकी उमर अनुमान अठारह वर्षकी थी तिसको दीक्षा देकर "श्रीसंपत्विजयजी” नाम दिया. बाद विहार करके “खेडा” “अहमदावाद १ “कोठ" “लोंबडी” “बोटाद” “वला" वगैरह शहरोंमें विचरते हुये, “पालीताणा” में पधारे. यहां श्रीतीर्थाधिराजकी यात्रा करके, सुरत निवासी "माणेकचंद ओसवालके लडकेको दीक्षा देकर "श्रीमाणिक्यविजयजी” नाम रखा. और संवत् १९४३ का चौमासा, चौवीस साधुओंके साथ, श्रीआनंदविजयजीने पालीताणामें किया. इन महात्माका चौमासा सुनकर सुरत निवासी शेठ "कल्याणभाई शंकरदास" वगैरह, भरुच निवासी शेठ " अनूपचंद मलुकचंद" वगैरह, बडोदा निवासी झवेरी “गोकलभाई दुल्लभदास" वगैरह, जील्ला खानदेश-मालेगांव धूलीया निवासी शेठ " सखाराम दुल्लभदास' वगैरह, खंभायत के रहनेवाले शेठ “पोपटभाई अमरचंद " वगैरह, बहुत शहरोंके अनुमान पांचसौ श्रावक श्राविका, अपना सांसारिक कार्य सब छोडके, जंगम और स्थावर दोनोंही तीर्थोंकी युगपत् सेवा करनेका इरादा करके, पालि. ताणे ही आके चौमासा रहे. इस चौमासेमें श्रीआनंदविजयजीने श्रावकोंके उत्साहानुसार, " श्रीभगवतीसूत्र सटीक ” तथा “ उपदेशपद सटीक " व्याख्यानमें सुनाया.
चौमासेकी समाप्ति समयमें, अर्थात् कार्चिकी पूर्णमासी ऊपर, यात्रा करनेके वास्ते बहुत लोकोंका मेला हुआथा. जिसमें कलकत्तावाले बाबु राय बहादुर " बद्रीदासजी” भी आये हुये थे. तथा "गुजरात” “काठियावाड " " कच्छ 7 “मारवाड" "पंजाब, " पूर्व " वगैरह देशोंके मुख्य शहरों से बहुत संभावित गृहस्थ भी आये हुयेथे. अनुमान ( ३५०००) आदमी यात्राके वास्ते आये हुयेथे. ऐसे शुभ प्रसंगमें, महाराज श्रीआनंदविजयजी (आत्मारामजी) की अपूर्व विद्वत्ता, और बुद्धि चातुर्यतासे प्रसन्न होकर, सर्व श्रीसंघने मिलके, उनको "मूरि" पद देनेका निश्चय किया. और संवत् १९४३ मगसर वदि (गुजराती कार्तिक वदि) पंचमी पूर्णा तीथिको, पालीताणामें शेठ नरशी केशवजीकी धर्मशालामें, श्रीचतुर्विध संघ समुदायने मिलके, पंडित मुनि श्रीआत्मारामजी (आनंदविजयजी) को “ सूरि पद" प्रदान करके, "श्रीमदिजयानंदमूरि" नाम स्थापन करके, अपने आपको पूर्ण किया. इस दिनसें लेकर सर्व साधु, और श्रावक वगैरह, कागल पत्रमें “पूज्यपादू श्रीश्रीश्री १००८ श्रीमद्विजयानंद मूरि" यह नाम लिखने लगे, और इस पूर्वोक्त नामसेही मानने लगे. शासन नायक श्रीमन्महावीर स्वामिसे श्रीमद्विजयानंद मूरि ७२ मे पट्टपर हुये, सो इस माफक है.
शासन नायक श्रीमन्महावीर स्वामी(१) श्री सुधर्मा स्वामी (२) श्री जंबू स्वामी (३) श्री प्रभवा स्वामी (४) श्री शय्यंभव सरि (५) श्री यशोभद्र सूरि
श्री संभूतविजयजी तथा श्री भद्रबाहु स्वामी
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