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तत्त्वनिर्णयप्रासादकिया, और एकमाससे अधिक कालपर्यंत उन राणीयोंके मुखके थूकलालाको अमृतसमान मनोहर मानके चूसा-चाटा, और कामशास्त्र सीखा, तिस थूक चाटनेमें भी ब्रह्मानंदही भोगा! क्या ऐसा काम करनेसें तो यतिधर्म क्षय नहीं हुआ, और कामप्रश्नोंके उत्तर देनेसें यतिधर्म क्षय होता था ? हा! इसके उपरांत अन्य बडा आश्चर्य कौनसा है ? और शंकर तो 'ऊर्द्धरेतः' था, राणीयोंकेसाथ भोग करनेसें 'अधोरेतः' किसतरें हो गया ?
पूर्वपक्षः-शंकरस्वामीके शरीरमें यह व्यवस्था थी, परंतु देहांतरमें यह नही. इसीवास्ते तो शंकरस्वामीने काश्मीरवासिनी सरस्वतीके प्रश्नोत्तरमें कहा है कि, देहांतरका किण पाप, इस देहको नही लगता है.
उत्तरपक्षः-हमारी समझमूजब तो, तुमारी मानी सरस्वती, तुमारे कहनेसेंही अज्ञानिनी सिद्ध होती है. क्योंकि, पहिले तो उसने शंकरस्वामीको परस्त्रीयोंसें भोग करनेवाले जानके निर्दोष पुरुष नही जाने,
और फिर शंकरखामीका उत्तर सुनके चुपकी होके शंकरस्वामीकी पूजा करने लग गई !! अब हम यहां यह प्रश्न पूछते हैं कि, पाप करने और पापके फल भोगनेवाला वोही देह है, वा अन्यदेह ? जेकर वोही देह है, तब तो जन्मांतरमें पापका फल भोगनेवाला देह नही है, तो फिर शंकरस्वामीकी देहने जन्मांतरके देहके किये पापसें भगंदरका भारी दुःख क्योंकर भोगा ? और जब देहही पापका करने और भोगनेवाला है, तब तो, जीव, सदा मुक्त होना चाहिये, पुण्यपापसे रहित होनेसें, और देहके साथ संबंध न होनेसें. जेकर कहोगे, जीवही पुण्यपापका कर्ता, और भोक्ता है, तब तो, शंकरस्वामीही परस्त्रीगमनरूप पापके कर्त्ता और भोक्ता, सिद्ध होवेंगे; और कामशास्त्र पढनेसे असर्वज्ञ सिद्ध होवेंगे. तथा देहांतरमें प्रवेश करनेसें जैसे उनकी ब्रह्मविद्या जाती रही, तैसेंही सर्व वेदांतीयोके मरे पीछे, ब्रह्मविद्या नष्ट हो जावेगी. क्योंकि, वेदांती.. योंके कहने मूजब ब्रह्मविद्या, देहके साथही संबंधवाली है; नही तो, देह छोडनसें शंकरस्वामीकी ब्रह्मविद्या, नष्ट क्यों होती? जेकर शंकरस्वामीकी
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