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________________ पंचत्रिंशःस्तम्भः। ब्रह्मविद्या नष्ट न होती तो, उनके शिष्य उनको ‘तत्त्वमसि' का उपदेश क्यों करते ? और शंकरस्वामी यदि सर्वज्ञ होते तो, अपनी करी मासकी अवधिको क्यों भूल जाते ? और देहांतरमें कामशास्त्र सीखनेको क्यों जाते ? क्या सर्वज्ञसें कोई शास्त्र छीपा है ? और उत्तर देनेसें मेरा यतिधर्म क्षय हो जायगा ऐसा विचार क्यों करते ? क्योंकि, फिर भी तो उसीही शरीरमें प्रवेश करके मंडनमिश्रकी भार्याको उत्तर दिये; क्या उस वखत उत्तर देनेसें यतिधर्म क्षय न हुआ ? और शंकरस्वामीको साक्षात् महादेव माने हैं तो, क्या पार्वतीजीसें भोग करनेसें तृप्त न हुए ? जिससें मृतक शरीरमें प्रवेश करके परस्त्रीयोंसें भोग करके उनके ओष्ठपुटोंकों चूसके ब्रह्मानंदका स्वाद लिया !!! और महादेवको तो, तुमने सर्वव्यापी माना है तो, राजाके मृतक शरीरमें अन्य कौन प्रवेश कर गया ? और कौन निकल आया ? क्योंकि, शंकर तो, आगेही सर्व जगे व्यापक है. और शंकरस्वामीको जो भगंदरका रोग हुआ, सो पूर्व जन्मांतरके पापोंके फलसें लिखा है तो, क्या पूर्वजन्मांतरोंमें शंकरस्वामीने पाप करे मानते हो ? तथा तुम तो, पुण्यपापके फलका प्रदाता, ईश्वरको मानते हो तो, फिर क्या शंकरने अपने किये पापके फल भोगनेवास्ते, आपही अपनी गुदामें भगंदररूप फोडा करलिया ? और अभिनवगुप्तने, जो अभिचारक कर्म करके शंकरको भगंदर फोडा किया तो, क्या अभिनवगुप्त शंकरसें अधिक सामर्थ्यवान् था ? वा, शंकर अपने बदलेके मंत्रसें उसको दूर नहीं कर सकता था? क्योंकि, शंकरको तो, तुम सर्वशक्तिमान् मानते हो. और शंकरस्वामीके शिष्य पद्मपादने नरसिंहरूप करके, और मंत्रजाप करके, भैरव, कपाली, और अभिनवगुप्तको मार डाला. क्या पद्मपाद अज्ञानी, रागी, द्वेषी था, जो ऐसा काम किया ? क्या ब्रह्मवित् नही था? यदि था तो, शंकरकीतरें समभाव क्यों नही किया ? इसवास्ते यही सिद्ध होता है कि, शंकर, और शंकरके शिष्योंमेंसें कोइ भी, रागद्वेष अज्ञान मोहसे रहित, और सर्वज्ञ, नहीं था. और जो जो कल्पना करके, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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