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त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः। अर्य्यरोहनियतो गणतो परिहासककुलतो पोनपत्रिकातो शाखातो गणिस्य अर्य्यदेवदत्तस्य न........॥" यह भी एक शिलालेखका उतारा है.
भाषांतरः-फतेह ! देवतायोंका नाशकर्ता ऐसें अरहतमहावीरको नमस्कार. वासुदेव राजाके संवत्के ९८ मे वर्षमें वर्षाऋतुके चौथे महिनेमें एकादशीके दिन इस मितिमें गणोंके मुख्य गणी अर्य्यदेवदत्त आर्यरोहणके स्थापे हुए, गणके परिहासककुलके पौर्णपत्रिकाशाखाके. ॥
अब इन ऊपर लिखे मथुराके पुराने शिलालेखोंके वांचनेसें दिगंबरानाय माननेवाले पक्षपातरहित सुज्ञजन प्रियबांधव दिगंबरलोकोंको विचार करना चाहिये कि, दिगंबरीय पट्टावलीयोंमें तथा दर्शनसारादि दिगंबरीय ग्रंथोंमें, जे लेख श्वेतांबरमतकी बाबत लिखे हैं, वे सत्य है, वा नही है ? और येह शिलालेख श्वेतांबरोंके कथनको सिद्ध करते हैं, वा, दिगंबरोंके कथनको ? क्योंकि, श्वेतांबरमतके दशाश्रुतस्कंधसूत्रके आठमे कल्पाध्ययनमें लिखा है कि, श्रीमहावीर स्वामीके आठ (८)मे पाटपर श्रीवीरात् संवत् २१५ में श्रीस्थूलभद्र स्वामी स्वर्गवासी हुए, उनके पाटपर ९ में पट्टधर श्रीसुहस्तिसूरि हुए, उनके षट् (६) शिष्योंसें षद् (६) गच्छ उत्पन्न हुए.
तथाहि ॥
" | स्थविर आर्यरोहणसें उद्देह गण, जिसकी चार शाखायें हुइ, और छ कुल हुए. । स्थविर भद्रयशसें ऋतुवाटिका गच्छ, तिसकी चार शाखा, और तीन कुल हुए. । स्थविर कामर्द्धिसें वेसवाडियागण, (गच्छ) तिसकी चार शाखा, और चार कुल. । स्थविर सुप्रतिबुद्धसें कौटिकगण, तिसकी चार शाखा और चार कुल. । स्थविर ऋषिगुप्तसें माणवकगण, तिसकी चार शाखा, और चार कुल. । स्थविर श्रीगुप्तसें चारण गच्छ, तिसकी चार शाखा, और सात कुल.।"
ये गच्छ, शाखा, कुलके नामका कोठा इसमाफक है.
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