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तत्त्वनिर्णयप्रासादतथा सुखकेवास्ते भट्टिमित्रकी स्त्री और ब्रह्मकी विकटा नामा पुत्रीने श्रीवर्द्धमानकी प्रतिमा बनवाई है-यह प्रतिमा-कोटिगणके वाणिज कुलके और वइरी शाखाके आचार्य नागनंदिकी निवर्त्तन प्रतिष्ठित है. ॥२॥
“॥ संवत्सरे ९० व..... ....स्य कुटुंबनि.व. दानस्य वोधुय कोटियतो गणतो प्रश्नवाहनकतो कुलतो मज्झमातो शाखातो....सनिकायभतिगालाए थवानि...........॥" इस लेखकेवास्ते डा० बुल्हर कहते हैं कि, इस लेखकी ली हुइ नकल मेरे वसमें नहीं है, इसवास्ते इसका पूर्णरूप में स्थापन नहीं कर सकता हूं, परंतु पहिली पंक्तिके एक टुकडेके देखनेसें ऐसा अनुमान हो सकता है कि, यह प्रतिमा किसी स्त्रीने अर्पण करी है (बनवाई है) और सो स्त्री एक पुरुषकी मालकणी (कुटुंबिनी ) और दूसरे पुत्रकी स्त्री (वधु) थी, ऐसें लिखा है।-संघमें कोटियगच्छके प्रश्नवाहन कुलकी मध्यमशाखाके-इत्यादि-॥३॥
“ ॥ स० ४७ ग्र. २ दि २० एतस्या पूर्वाये चारणे गणेपेतिधमिककुलवाचकस्य रोहनदिस्य शिसस्य सेनस्य निवंतनसावक-इत्यादि ॥”
संवत् ४७ उष्णकालका महिना दूसरा (२) मिति २० इस मितिमें यह संसारी शिष्यका देवार्पण किया हुआ पाणी पीनेका एक ठाम है यह रोहनंदिका शिष्य चारणगणके प्रैतिधर्मिककुलका आचार्यसेन तिसका प्रतिष्ठित है. ॥ ४ ॥
“॥ सिद्ध नमो अरहतो महावीरस्य देवनाशस्य राज्ञा वासुदेवस्य संवत्सरे ९८ वर्षमासे ४ दिवसे ११ एतस्या पूर्वाये
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