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________________ त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः "॥ सिद्धसं २० ग्रमा १ दि १०+५ को हियतो गणतो वाणियतो कुलतो वैरितो शाखातो शिरिकातो भत्तितो वाचकस्य अर्यसंघसिंहस्य निर्वर्त्तनं दत्तिलस्य......वि....लस्य कोठंबिकिये जयवालस्य देवदासस्य नागदिनस्य च नागदिनाये च मातुये श्राविकाये दिनाये दानं-इ (श्री) वईमानप्रतिमा ॥” भाषांतरः-"॥ जय !* संवत् २० का उष्णकालकामास पहिला (१) मिति १५, श्रीवर्द्धमानकी प्रतिमा, दत्तिलकी बेटी वि .. लकी स्त्री जयवाल जयपाल देवदास और नागदिन अर्थात् नागदिन्न वा नागदत्त और नागदिना अर्थात् नागदिन्ना वा नागदत्ताकी माता दिना अर्थात् दिन्ना वा दत्ता घरकी मालिकिणी गृहस्थ शिष्यणी श्राविका तिसने अर्पण करी-यह प्रतिमाकौटिकगच्छमेंसें वाणिजनामा कुलमेंसें वैरीशाखाके भागके आर्य-संघसिंहकी निवर्त्तन है अर्थात् प्रतिष्ठित है.॥" ॥१॥ “॥ सिद्ध महाराजस्य कनिष्कस्य राज्ये संवत्सरे नवमे ९. मासे प्रथ १ दिवसे ५ अस्यां पूर्वाये कोटियतो गणतो वाणियतो कुलतो वैरितो शाखातो वाचकस्य नागनंदिस निर्वरतनं ब्रह्मधूतुये भट्टिमितसकुटुंबिनिये विकटाये श्रीवईमानस्य प्रतिमा कारिता सर्वसत्वानं हितसुखाये ॥" यह लेख श्री महावीरकी प्रतिमाऊपर है. भावार्थ:-जय! कनिष्कमहाराजाके राज्यमें नव (९) मे वर्ष पहिले (१) महिनमें मिति पांचमी (५)में-इसदिनमें सर्व प्राणियोंके कल्याण * " सिद्धं " इस शब्दका 'जय' अर्थ यूरोपीयन पंडितोंने किया है, सो यथार्थ नहीं है. क्योंकि, जैनमतमें प्रायः । ॐ ' ' अहं' 'सिद्धं ' इत्यादि शब्द मंगलार्थ, और नमस्कारार्थ वाचक मानके, आदिमें लिखे जाते हैं. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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