________________
तत्त्वनिर्णयप्रासाद
नंदीस र अदृदिवसेसु तहा अण्णेसु उचियपवेसु ॥ जं कीरइ जिणमहिमा वण्णेया कालपूजा सा ॥ ४॥ भावार्थ:- तीर्थंकरोकी जन्मभूमिका की, तीर्थंकरों की तपभूमिकाकी, केवलज्ञानप्राप्तिकी भूमिकाकी, और निर्वाणकल्याणकी भूमिकाकी, पूर्वोक्त विधानकरके जो पूजा करनी, सो क्षेत्रपूजा है. भावार्थ यह है कि, अयोध्यापुरी आदि चतुर्विंशति तीर्थंकरोंकी जन्मपुरी, तपोवन अर्थात् दीक्षाभूमी, ज्ञानोत्पत्तिक्षेत्र, तथा अष्टापद, सम्मेत शिखर, गिरनार, चंपापुरी, पावापुरा, आदि निर्वाणक्षेत्र, इन स्थानों में जायके जलादिद्रव्योंसें पूर्वोक्त
करके तत्रस्थ चैत्यालयस्थ जिनप्रतिमाकी, वा जिनचरणयुगलकी पूजा करनी, सो क्षेत्रपूजा है. ॥ तीर्थंकरके गर्भावतारका दिन, जन्माभिषेकका दिन, दीक्षाका दिन, ज्ञानका दिन, और निर्वाणका दिन, अर्थात् जिनेंद्रके पांचकल्याणक, पूर्वे जिन दिनोंमें हुए, तिन दिनोंमें पूर्वोक्त विधिसें पूजा करनी; और विशेषतः इक्षुरस, घृत, दहि, दुग्ध, और सुगंध जलके भरे हुए पवित्र विविध प्रकारके कलशोंकरके जिन - मूर्त्तिको अभिषेक करना; तथा रात्रिकेविषे संगीत, नाटक, जिनगुणगायनादिकोंकरके रात्रिजागरण करना; तथा नंदीश्वरादि अष्टदिनों में और अन्य भी षोडश कारण, दश लाक्षण, पुष्पांजलिसुगंध दशमी, अनंतत्रत, रत्नत्रय आदि धर्मोचित पर्वके दिनों में श्रीजिनमंदिरमें जिनपूजा प्रभावनादि कार्य करने; सो कालपूजा जाणनी ॥ इत्यलमतिप्रपंचेन ॥
૨૯
प्रश्नः - मुनिको पीछी कमंडलूविना अन्य कुछ भी रखना न चाहिये. उत्तरः- यह तुमारा कथन अयोग्य, और स्वशास्त्रानभिज्ञताका सूचक है. क्योंकि, ब्रह्मचारिपांचाख्यकृत तत्त्वार्थसूत्रावचूरि, जो कि ब्रह्मचारिश्रुतसागरकृत तत्त्वार्थटीकासें उद्धार करी हुई हैं, तिसमें पांचसमितियों के अधिकार में आदाननिक्षेपसमितिका ऐसा स्वरूप लिखा है.
तथाहि ॥
"}
॥ पिच्छादिना धर्मोपकरणानि प्रतिलिख्य स्वीकरणं विसर्जनं सम्यग / दाननिक्षेपसमितिः ॥
""
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org