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तत्त्वनिर्णयप्रासाद__ और जिनप्रतिमा, जिनमंदिरके बनवानेका फल दिगंबराचार्योनेही ऐसें कहा है. तथाहि पूजाप्रकरणे ॥ कुंथुभरिदलमत्ते जिणभवणे जो ठवेइ जिणपडिमं ॥ सरिसवमेत्तंपि लहइ सो णरो तित्थयरपुण्णं ॥ १॥ जो पुण जिणिंदभवणं समुण्णयं परिहितोरणसमग्गं ॥ णिम्मावइ तस्स फलं को सकइ वण्णिउं सयलं ॥२॥
भावार्थः-कुंथुभरि (कुटुंबर ) वृक्षके पत्रप्रमाण जिनभवनमें सरसवमात्र जिनप्रतिमाको जो स्थापन करे, सो भव्यप्राणी तीर्थंकर पूण्यप्रकृतिको प्राप्त करे हैं.। और जो प्राणी भावोंसहित बडा ऊंचा शिखरबंध प्रदक्षिणा तोरणसहित जिनभवन बनवावे है, तिसके संपूर्ण फलका वर्णन करनेको कौन समर्थ है ? अपितु कोइ नही. ॥ तथा पूजाके फलका भी वर्णन पृथक् २ दिगंबराचार्योंने कहा है. तथाहि षड्विधपूजाप्रकरणे॥
जलधाराणिक्खवणे पावमलं सोहणं हवे णियमा ॥ चंदणलेवेण णरो जायइ सोहग्गसंपण्णो ॥१॥ जायइ अक्खयणिहिरयणसामिओ अक्खएहि अक्खोहो॥ अक्खीणलबिजुत्तो अक्खयसोक्खं च पावेइ ॥२॥ कुसुमहिं कुसेसयवयणतरुणिजणणयणकुसुमवरमाला ॥ वलयेणच्चिय देहो जायइ कुसुमाउहो चेव ॥३॥ जायइ णिविज्जदाणेण सत्तिगो कंतितेयसंपण्णो ॥ लावण्णजलहिवेलातरंगसंपावीयसरीरो॥४॥ दीवहिं दीविया सेसजीवदवाइं तच्च सम्पावो । सम्पावजणियकेवलपदीवतेएण होइ. णरो॥५॥
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