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तत्त्वनिर्णयप्रासाददिगंबरी:-यह पूर्वोक्त पूजा विषयिक आपका श्रम, प्रायः व्यर्थ है. क्योंकि, हमारेही शास्त्रोंके पाठ हैं, और इन सर्वपाठोंको हम मानते हैं, और इन सर्वपाठानुसार हम करते भी हैं.
श्वेतांबरी:-यह आपका कथन सत्य है, परंतु हमारे पूर्वोक्त लेखोंमें कितनाक श्रम, वीसपंथी दिगंबरी आदि सर्व दिगंबराम्नायके वास्तेही है; जिसमें भी, पूजाविषयक श्रम तो, प्रायः तेरापंथी दिगंबरीयोंकेवास्ते हैं
तेरापंथी दिगंबरीः-पुष्पादिकसे पूजन करनाहि पाप है. क्योंकि, इसमें बड़ी हिंसा होती है. और धर्म तो, अहिंसामय है. अभिषेकमें और पुष्पादिके चढावनेमें बहुत सावद्यारंभ होता है, इसवास्ते हम पूर्वोक्त विधान नही करते हैं.
उत्तरः-वाहजी वाह ! ! आपको भी ढुंढकमतका स्पर्श हुआ मालुम होता है. क्योंकि, ऐसी जैनागमविरुद्ध श्रद्धा तो, अपठित ढुंढकमतावलंबीयोंकी है; परंतु दिगंबराम्नायकी तो ऐसी श्रद्धा नहीं है. बलकि, दिगंबरानायके श्रीयोगींद्रदेवकृत श्रावकाचारमें, तथा सारसंग्रहमें, तथा आराधनाकथाकोशादि शास्त्रोंमें लिखा है कि, श्रीजिनाभिषेकमें, पुष्पादिकसे जिनपूजा करनेमें, और तीर्थयात्रा, जिनबिंब, प्रतिष्ठा आदि कार्यों में, जो आरंभ कहता है, और सावद्ययोग कहता है, तथा हिंसा. रंभ कथन करता है, सो मिथ्यादृष्टि है, दर्शनभ्रष्ट है, पापी है, सम्यग्दर्शनका घातक है, और श्रीजिनधर्मका द्रोही है. तथाहि ॥
आरंभे जिणण्हावियए जो सावज भणंति दंसणं तेण ॥ जिमइमलियो इच्छुण कांइओभंति ॥ १॥ जिनाभिषेके जिनवैप्रतिष्ठाजिनालये जैनखुयात्रयायां ॥ सावद्यलेशो वदते स पापी स निंदको दर्शनघातकश्च ॥१॥ श्रीमजिनेंद्रचंद्राणां पूजा पापप्रणाशिनी ॥ स्वर्गमोक्षप्रदा प्रोक्ता प्रत्यक्षं परमागमे ॥१॥
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