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________________ ६०० तत्त्वनिर्णयप्रासादकरके दूर करते संते, ऐसे दीपकोंकी रचना, भक्ति से प्रभुके चरणकमलके आगे करनी. ॥ इति दीपकपूजा-॥ __कालागुरु (अगर), अंबर, चंदन, कपूर, सिल्हारसादि सुगंध द्रव्योंकरके उपनी जो वर्तियां, तिनोंकरके सुरेंद्रकरके स्तवे हुए श्रीजिनेंद्रके चरणकमलको धूपित करे. कैसी वर्तियां? सुगंधकी पंक्ति, और धूमकी उग्र शिखा, तिनोंकरके दिखाया है स्वर्ग और मोक्षका मार्ग जिनोंने. ॥ इति धूपपूजा-॥ जंबीरफल, कदलीफल (केला), दाडिम (अनार), कपिय्य (कौठ), पनस, तूत, नालिएर, हिंताल, ताल, खजूर, किंदूरी (गोल्हफल ), नारंगी, सुपारी, तिंदुक, आमला, जांबू, बिल्व, इत्यादि अनेक प्रकारके आगे सुगंधित, और मिष्ट पक्क हुए फलोंकरके जिनेंद्रके चरणकमलके आगे रचना करनी. ॥ इति फलपूजा-॥ ___ अष्टविध मंगल द्रव्य झारी १, कलश २, चामर ३, छत्र ४, ध्वजा ५, तालबींजना ६, स्वस्तिक ७, दर्पण ८, तथा बहुविध पूजाके उपकरण, तथा धूपदहन आदि, भगवानकी पूजाके अर्थे विस्वारना.॥इति पूजाविधानम्-॥ इत्यादि अनेक शास्त्रोंमें, तथा और भी मुक्तावलिपूजा, नरेंद्रसेनभट्टारककृत प्रतिष्ठापाठ,प्रभाकरसेनकृत प्रतिष्ठापाठ, आशाधरकृत प्रतिष्ठापाठ, योगींद्रदेवकृत श्रावकाचार, भगवदेकसंधिकृतजिनसंहितादि शास्त्रोंमें नानाप्रकारका पूजाविधान कथन करा है. ॥ तथा भगवज्जिनसेनाचार्यकृत आदिपुराणमें लिखाहै कि, उत्तमकुलके मनुष्यको जैसें गुरुजनकी माला,अपने शिरपर धारण करने योग्य है, तैसेंही जिनपदस्पर्शितपुष्पकी माला, अपने शिरऊपरि धारने योग्य है. । तथा श्रीअजितनाथ तीर्थकरकी माता जयसेनाने बाल्यावस्थामें अट्ठाइमहोत्सव करके, अर्हन्के शरीरको विलेपन करा, पुष्पमाला चढाई. पीछे जिनप्रतिमाके चरणको स्पर्शी हुई तिस मालाको लेके अपने पिताको देई, पिताने भी खुशीसें लेके पुत्रीको पारणा करनेकों विदाय करी. इत्यादि कथन श्रीअजितनाथ पुराणमें है. तथा सुलोचनाने ऐसेंही गंधोदक, और पुष्पमाला, अपने पिता अकंपनामा राजाको दीनी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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