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________________ त्रयस्त्रिंश स्तम्भः। तथा अव्यक्त ध्वन्युच्चार कर रहे हैं. ऐसी सुंदर सुगंधसें देवताके मुकुटकरके घटित स्पर्शित चरणकमल है जिसके, ऐसें श्रीजिनेश्वरदेवको विलेपन करें. ॥ इतिगंधपूजा-॥ __ चंद्रमाकी चांदनीसमान अतिउज्वल अखंडित निर्मल अतिसुगंधित, तथा निर्मल जलकरके धोए हुए, ऐसें अक्षत (चावलों) करके जिनप्रतिमाके प्रतिष्ठित हुए पूजन करना; कैसे पूर्वोक्त चावल ? मार्नु पुण्यके अंकुर है; । अति मिष्ट कलमशाली और तंदुलके समूहको स्वच्छ करके तिन चावलोंकरके, मनुष्य सुरासुरकरके पूजित ऐसें श्रीजिनेंद्रके पदयुगलकों पूजें. ॥ इत्यक्षतपूजा-॥ __ मालती, कदंब, सूर्यमुखी, अशोक, बकुल, (बोलसिरी) तिलकवृक्षके पुष्प, मंदारनामा पुष्प, नागचंपेके पुष्प, उत्पल-कमल, निर्गुडीके, कणवीर (कंडीर) के, मल्लिकानामा, कचनारके, मचकुंदके, किंकर, कल्पवृक्षके, जूईके, पारिजातिकके, जासूसके पुष्प, डमरेके पत्र, सोनेके पुष्प, चांदीके पुष्प, इत्यादि अनेक प्रकारके पुष्पोंकरके, तथा मोतीकी माला आदि अनेक प्रकारकी मालायोंकरी, देवेंद्रादिकोंकरके पूजित ऐसे श्रीजिनेंद्रके चरणयुगलोंका पुजन करे. ॥इतिपुष्पपूजा-॥ __ दहिदुग्धघृतकरी मिश्रित मिष्टतंदुलका भात करी, तथा नानाप्रकारके शाक आदि व्यंजन (तीमन) करी, तथा नानाप्रकारके पक्कान्नकरी सोना चांदी कांसी आदिके थालोंमें मोदकादि अनेकप्रकारके भक्ष्यको स्थापन करी, श्रीजिनवरके चरणकमलके आगे भक्तिसें पूजाका विस्तार करें. ॥ इतिनैवैद्यपूजा-॥ ____ तथा भगवान्के चरणकमलके आगे भक्तिसें दीपककी रचना. करें. कैसे दीपककी ? अपनी प्रभाके समूहकरके सूर्यके सदृश प्रताप धारण करा है जिनोंने, तथा धूमकरके रहित शिखा है जिनकी, तथा मंदमंद पवनके वशसें नृत्यकेसमान नृत्य करते संते, तथा अतिसघनकर्मके पटलके समूहके समान जो अंधकार तिसको अपने प्रकाशके अतिशय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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