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तत्त्वनिर्णयप्रासादभावार्थः-ऐसें पूर्वोक्त प्रकार शब्द करी, कैसा शब्द ? क्षोभकों प्राप्त हुआ समुद्र तिसका जो गरजारव तिसकी उपमा योग्य श्रेष्ठ, भेरी १, करड २, काहल ३, जयघंटा ४, शंख ५, इन वाजित्रके समूहके शब्दकरी गुलगुल अर्थात् अव्यक्तशब्द होय है; तथा तिविल १, और कांसी, ताल, मंजीरे, आदि वाजित्रोंके झमझम शब्द होय है; तथा पटहढोल १, मृदंग २, आदि वाजिनके शब्दोंकरी एकधूम मची रही है। इत्यादि । नाटक करनेका विधि है.
तथा-जिनेंद्रके गुणोंका आरोपण, जिनप्रतिमामें स्थापन करता हुआ बैठे; और इष्टलग्नोदयके हुए, जिनप्रतिमाको तिलक देवें । पीछे प्रतिमाके सर्व अवयवोंमें मंत्रन्यास करें; पीछे बहुप्रकारके कुसुम-पुष्पोंकरके अनेक प्रकारकी पूजा करें.
तथा-वारनाकरी, तथा जवारेके हरित अंकुरोंकरी, तथा सरसवपत्र, और वृक्षोंकरी, तथा पूर्वोक्त उपकरणोंकरी, अपने विभवानुसार जिनप्रतिमाका पूजन करें. ॥
अथ पूजाविधिरुच्यते-अब आगे पूजाका विधि कहते हैं। चंद्रमाके किरणसमान उज्वल रत्नोंसें जडी हुई झारीको ग्रहण करी, जिनप्रतिमाके चरणकमलके आगे तीन धारा जलकी दीजे; (जिनप्रतिमाको न्हवण करानेका विधि प्रथमकी गाथायोंमें है-एवं चत्तारिदिणा-इत्यादि) कैसी है झारी ? मोती, प्रवाल, (गुलीयां), मरकत, स्वर्ण, मणि, इनोंकरके खचित-जडा हुआ है कंठ, अर्थात् सुंदर मणिमोतीसुवर्ण आदिकोंसें जडी हुई प्रनालिका-जल नीकलनेकी टूटी है जिसकी, तथा सूत्रोक्त पुष्प और कमलादिकोंकी रजकरी पीत, और सुगंधित, ऐसा निर्मल जल भरा है जिसमें. ॥ इतिजलपूजा-॥ ___ कर्पूर, केसर, अगर, मलयागिरमिश्रित चंदनरसकरके घसनेसें प्रचुर सुगंधकरके वासित करा है दिशासमूह जिसने, तथा सुगंध द्रव्यके अनुमार्गकरके प्राप्त हुए, भ्रमरोंकी जो मदोन्मत्त पंक्ति तिसकरके वाचालकृत अर्थात् जिस गंधके प्रचुर सुगंधसें चारों तर्फ भ्रमर फिर रहे हैं
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