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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासादतचंदनसुगंध्यंबुस्रजोव्याधिहराः स्फुटम् ॥ प्रत्यहं त्वत्पतेर्भमा प्रयच्छ रोगहानये ॥२॥ भावार्थः-मदनसुंदरीको महामुनिने कहा कि, श्रीसिद्धचक्रका आठ दिनपर्यंत निरंतर जगत्में सारभूत ऐसें जलादि आठ प्रकारके पूजाके द्रव्यो, अर्थात् अष्टद्रव्यसें पूजन कर; और निरंतर व्याधिको हरनेवाले, ऐसें सिद्धचक्रको स्पर्श हुए, चंदन, सुगंध, जल, और माला, रोगके दूर करने वास्ते भक्ति से अपने पतिको लगाव. तथा निर्वाणकांडमें ऐसे लिखा है। गोमदेवं वदामि पंच लपंधाहदेहउच्चंतं ॥ देवा कुणंति विहिं केलरकुसुमाण तस्सउवरिम्मि ॥१॥ भावार्थ:-गोमदेव (बाहुबल) को मैं वंदना करता हूं, कैसें हैं गोमहदेव ? जिसका पांचसौ धनुष्य प्रमाण उबदेह है, और तिसके ऊपर देवता केसर और पुष्पोंकी वर्षा करते है. तथा षट्कर्मोपदेशरत्नमालामें ऐसें लिखा है.॥ इतीमं निभायं कृत्वा दिलानां सलकं सती ॥ श्रीजिनप्रतिबिंबानी सपनं सनकारयत् ॥ १॥ चंदनागरुकर्पूरसुगंधश्च विलेपनम् ॥ सा राज्ञी विदधे प्रीत्या जिनेंद्राणां त्रिसंध्यकम् ॥२॥ भावार्थ:-यह (पूर्वोक्त ) निश्चय करके मदनावलीनामा राणी, श्रीजिनेंद्रप्रतिमाको सात दिन स्नान कराती भई; और प्रीतिसें त्रिसंध्यामें जिनेंद्रको चंदन अगरकर्पूरादि सुगंध द्रव्योंसें विलेपन करती भई. तथा प्रतिष्ठापाठमें ऐसें लिखा है. जिनांधिस्पर्शमात्रेण त्रैलोक्यानुग्रहक्षमाम् ॥ इमां स्वर्गरमादूती धारयामि बरस्त्रजम् ॥१॥ भावार्थः-मैं प्रधानमालाको धारण करता हूं, कैसी माला ? जिनेंद्रके चरण के स्पर्शमात्रसें तीनों लोकों को अनुग्रह करने में समर्थ, और स्वर्गकी लक्ष्मीकी प्राप्तिमें दूतसमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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