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त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः।
५७१ वा, अन्यजनोंको ? तिनकों तो, नही होती है. क्योंकि, भगवंतको निर्मोह होनेसें, जुगुप्साका अभाव है. जेकर अन्य जनोंकों होती है, तो क्या, मनुष्य, अमर, इंद्र, इंद्राणि, इत्यादि सहस्र जनोंकरके सकुल सभाकेविषे, वस्त्ररहित भगवंतके बैठे हुए, तिनोंकों जुगुप्सा नही होती है ?
दिगंबर:-भगवंतको अतिशयवंत होनेसें,तिनका नग्नपणानही दीखता है.
श्वेतांबरः-अतिशयके प्रभावसे भगवंतका निहार भी मांसचावालोंके अदृश्य होनेसें, दोष नही है. और सामान्यकेवलियोंने तो, विविक्तदेशमें मलोत्सर्ग करनेसें दोषका अभाव है. ॥६॥ सातमा और आठमा पक्ष भी ठीक नही है. मैथुनेच्छा, और निद्रा, इनको मोहनीकर्म और दर्शनावरणकर्मके कार्य होनेसें; और भगवंतमें ये दोनोंही कर्म, नहीं है. तिसवास्ते कवलाहारका कार्य भी केवलज्ञानके साथ विरोधि नहीं है. ॥७॥८॥ और सहचरादि भी विरुद्ध नहीं है. जिसवास्ते, सो सहचर, छद्मस्थरणा है, वा अन्य कोई ? आदि पक्ष तो नहीं है. क्योंकि, दोनोंही वादियोंने (श्वेतांबर दिगंबर दोनोंहीने ) केवलीमें छद्मस्थपणा माना नही है. जेकर अस्मदादिकोंमें तैसें देखनेसें, छद्मस्थपणेके साहचर्यका नियम माना जावे, तब तो, गमनादिकोंको भी, छद्मस्थपणेके सहचर मानने पडेंगे. और अन्य, जो कर, मुख, चालनादि, तिसके सहचारी हैं, वे भी केवलज्ञानके साथ विरोधी नहीं है. ऐसेंही उत्तरचरादि भी केवलज्ञानके साथ विरोधी नही है. इसवास्ते यह सिद्ध हुआ कि, कवलाहार सर्वज्ञपणेके साथ विरोधी नहीं है. इससे केवलिके कवलाहारका करना सिद्ध हुआ. ॥ इति केवलीभुक्तिव्यवस्था ॥
दिगंबर:-स्त्रीको तद्भवमें मोक्ष नही होवे है.।। तथा च प्रभाचंद्रः ॥ "॥स्त्रीणां न मोक्षः पुरुषेभ्यो हीनत्वान्नपुंसकादिवदिति॥” भाषार्थ:-स्त्रियोंको मोक्ष नहीं है; पुरुषोंसेंही न होनेसें, नपुंसकादिवत्.।
श्वेतांबरः-यहां तुमने सामान्यकरके धर्मिपणे स्त्रियां ग्रहण करी हैं, वा विवादास्पदीभूत स्त्रियां ग्रहण करी हैं ? प्रथम पक्षमें पक्षके एकदेशमें
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