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________________ त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः। ढूंढकमत उत्पन्न हुआ है. इनका निंद्य आचरण, इनकोंही दुःखदायी होवेगा, न तु श्वेतांबरमतवालोंको. इसवास्ते इनकेसाथ हमारा कुछ भी संबंध नहीं है; वीसपंथी, तेरापंथी, गुमानपंथी आदिवत् . ॥ और तुम अपनी तर्फ नहीं देखते हो कि, हमारा पंथ नवीनही निकाला है, और सर्व शास्त्र नवीनही रचे हुए हैं. क्योंकि, प्रश्नचर्चासमाधाननामाग्रंथके १३५ मे प्रश्नमें लिखा है कि, “ महावीर भगवान्के नीर्वाणपीछे संवत् ६८३ वर्षे, धरसेन मुनि, गिरनारकी गुफामें वैठे थे, तिस कालमें ग्यारा अंग विच्छेद गए थे, धरसेन मुनि ज्ञानवान् रहे. कर्मप्राभृत दूसरे पूर्वकी कंठान था, तिनके अपनी अल्पायु जान कर, ज्ञानके अव्यवच्छेद होनेके कारणतें, जिनयात्रा करने संघ आया था, तिनपास पत्री ब्रह्मचारीके हाथ भेज कर, तीक्ष्ण बुद्धिमान् भूतबलि १, पुष्पदंत २, नामे दो मुनि बुलवाये; तिनको ज्ञान सिखाया, तिनको विदा करा, आप मृतु हुइ. पीछे तिन दोनों मुनिओने, ज्येष्ठ शुदि ५ कू तीन सिद्धांत बनाये. सित्तरहजार (७००००) श्लोकप्रमाण धवल १, साठहजार (६००००) श्लोकप्रमाण जयधवल २, चालीसहजार (४००००) श्लोकप्रमाण महाधवल ३, इनकों पढे, सो सिद्धांती कहलाये. इन शास्त्रोंमेंसूं नेमिचंद्रसिद्धांतिने चामुंडरायकेवास्ते गोमट्टसार रचा.” तथा आचार्य श्रीसकलकीर्तिविरचित प्रश्नोत्तरोपासकाचारके दूसरे अध्यायमें श्रीसुधर्ममुनींद्रेण चोक्तं श्रीजंबुस्वामिना ॥ केवलज्ञाननेत्रेण ज्ञानं गार्हस्थ्यगोचरम् ॥ ३३॥ विषादिमुनिभिः सर्वेादशांगश्रुतांतगैः॥ प्रणीतं भव्यसत्वानामुपकाराय तच्छृतम् ॥ ३४॥ .: ततः कालादि दोषेण प्रायुर्मेधांगहानितः॥ हीयते प्रांगपूर्वादिश्रुतं श्रीधर्मकारणम् ॥ ३५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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